12 सितम्बर, 2019
यूएनआईसी/प्रेस विज्ञप्ति/153-2019
वैश्विक एसडीजी 2019
वैज्ञानिकों का आग्रह : हाल के दशकों की विकास उपलब्धियां खोने से बचने के लिए तत्काल लक्षित कार्रवाई आवश्यक
जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता क्षय से प्रगति को उत्पन्न खतरे को देखते हुए मानव और प्रकृति के बीच नए संबंध की आवश्यकता
न्यूयॉर्क 11 सितम्बर- मानव मात्र के कल्याण और 2030 तक करीब 8.5 अरब की पृथ्वी की समूची आबादी को गरीबी से मुक्ति दिलाना अभी भी संभव है। बशर्ते मानव और प्रकृति के बीच संबंध में तत्काल एक बुनियादी परिवर्तन लाया जाए और देशों के बीच तथा उनके भीतर सामाजिक एवं जैंडर असमानता में उल्लेखनीय कमी की जाए। यह निष्कर्ष वैज्ञानिकों के स्वतंत्र समूह द्वारा तैयार संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट में निकाला गया है। यह रिपोर्ट 2019 सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) शिखर सम्मेलन में जारी की जाएगी, किन्तु आज उपलब्ध करा दी गई है।
रिपोर्ट में सभी देशों से आग्रह किया गया है कि वे 2030 सतत् विकास एजेंडा की दिशा में हुई प्रगति का आकलन करें। चार वर्ष पहले ऐतिहासिक सतत् विकास लक्ष्यों का अनुमोदन किए जाने के बाद से तैयार अपनी किस्म की इस पहली रिपोर्ट का शीर्षक है ”द फ्यूचर इज नॉउ : साइंस फॉर अचीविंग सस्टेनेबल डेवलेपमेंट।” इस रिपोर्ट के अनुसार विकास का वर्तमान मॉडल टिकाऊ नहीं है और पिछले दो दशक में हुई प्रगति का रुख पलटने का खतरा उत्पन्न हो गया है क्योंकि सामाजिक असमानताएं बढ़ रही हैं और हमें सहारा देने वाले प्राकृतिक पर्यावरण में ऐसी गिरावट आने की आशंका है जिसे उबारा नहीं जा सकेगा। वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि अब भी बहुत अधिक आशावादी भविष्य को साकार किया जा सकता है बशर्ते विकास नीतियों, प्रोत्साहनों और कार्रवाइयों में जबर्दस्त परिवर्तन किया जा सके।
रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि अलग-अलग सतत् विकास लक्ष्यों औऱ आज समाज को परिभाषित करने वाली ठोस प्रणालियों के बीच परस्पर संबंधों को समझना आवश्यक है ताकि ऐसी नीतियां बनाई जा सकें जो कठिन फैसलों को संभाल सकें।
कायाकल्प की आवश्यकता
केवल भौतिक वस्तुओं की खपत बढ़ाकर आर्थिक वृद्धि पैदा करना अब विश्व स्तर पर व्यावहारिक विकल्प नहीं रह गया है: अनुमानों के अनुसार दुनिया भर में इस प्रकार की सामग्री का उपयोग 2017 से 2060 के बीच 89 गीगा टन से बढ़कर 167 गीगा टन यानी लगभग दो गुना हो जाएगा और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन तथा खनन और अन्य प्रदूषण स्रोतों जैसे अन्य विषैले प्रभावों का स्तर भी उसी अनुपात में बढ़ता जाएगा।
विकास के वर्तमान मॉडल ने करोड़ों लोगों को संपन्नता दी है, लेकिन इसके कारण गरीबी और अन्य वंचनाएं भी जारी रही हैं; नवाचार, सामाजिक सामंजस्य और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि को चोट पहुंचाने वाली असमानता अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गई है; और वैश्विक जलवायु प्रणाली एवं जैव-विविधता क्षय के कारण इसने विश्व को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रास्ता बदलने के लिए विश्व को भोजन, ऊर्जा, खपत एवं उत्पादन और शहरों सहित मानवीय गतिविधि के अनेक प्रमुख क्षेत्रों में आमूल परिवर्तन करना होगा।
इस तरह का आमूल परिवर्तन सरकारों, कारोबार, समुदायों, प्रबुद्ध समाज और व्यक्तियों की समन्वित कार्रवाई से ही लाना संभव है। वैज्ञानिकों की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिसे संवहनीयता के लिए विज्ञान में और विकासशील देशों में स्थित प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थाओं में निवेश बढ़ाकर और मजबूत किया जा सकता है।
रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मूल आवश्यकता आर्थिक वृद्धि को पर्यावरण विनाश से अलग करने की है। इसके साथ ही सम्पदा, आय और अवसरों की सुलभता में सामाजिक एवं जैंडर असमानताओं को कम करना होगा।
सभी देशों की शुरुआत एक ही बिन्दु से नहीं हो रही है, इसलिए वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिक निर्धन देशों में वृद्धि के अधिक ऊंचे स्तरों की आवश्यकता जारी रहेगी ताकि उत्तम सामाजिक सेवाएं और बुनियादी ढांचा खड़ा किया जा सके। साथ ही इस बात पर भी बल है कि
पहले वृद्धि हासिल करना और बाद में सफाई करना कोई विकल्प नहीं है। रिपोर्ट में उपयुक्त टैक्नॉलॉजी और ज्ञान की सुलभता बढ़ाने की आवश्यकता बताई गई है।
विकसित देशों को अपने उत्पादन और खपत के तरीके बदलने होंगे। जीवाष्म ईंधन और प्लास्टिक का इस्तेमाल सीमित करना होगा। सार्वजनिक और निजी निवेश को सतत् विकास लक्ष्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रोत्साहित करना होगा।
वैज्ञानिकों का सुझाव है कि संयुक्त राष्ट्र नए सतत् विकास निवेश लेबल को प्रोत्साहित कर सकता है जिसकी कसौटियां और मार्गदर्शक सिद्धांत स्पष्ट हों ताकि ऐसे उद्योगों एवं वित्तीय बाजारों में निवेश को प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत किया जा सके जो सतत् विकास को बढ़ावा देते हैं और ऐसा न करने वाले क्षेत्रों में निवेश को हत्सोसाहित किया जा सके।
यह कायाकल्प जितने बड़े पैमाने पर करने की आवश्यकता है उतना कर पाना आसान नहीं है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि इतने व्यापक ढांचागत परिवर्तन में निहित तनावों और कठिनाइयों का पूर्वानुमान लगाने और उनका प्रभाव कम करने के लिए विज्ञान की गहरी समझ आवश्यक है। उदाहरण के लिए जीवाष्म ईंधन और टिकाऊ भविष्य के लिए हानिकारक अन्य उद्योगों को बंद करने से रोजगार खोने वालों के लिए वैकल्पिक आजीविका का प्रबंध किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट तैयार करने वालों का मानना है कि दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और संकल्प के बल पर ही आवश्यक आमूल परिवर्तन किए जा सकते हैं और सबके लिए उपयुक्त कोई एक समाधान नहीं है। विकासशील देशों के लिए आवश्यक प्रयास विकसित देशों में अपनाए गए प्रयासों से बहुत भिन्न दिखेंगे।
कार्रवाई का आह्वान : 20 प्रभावकारी प्रयास
रिपोर्ट में कार्रवाई का आह्वान करते हुए ऐसे 20 बिन्दुओं की पहचान की गई है जहां हस्तक्षेप करने से आने वाले दशक में एक से अधिक लक्ष्यों और उद्देश्यों के प्रति आमूल परिवर्तनकारी और त्वरित प्रगति हासिल की जा सकती है। यह लक्षित कार्रवाइयां ताजा वैज्ञानिक शोध पर आधरित हैं जिनमें व्यवस्था संबंधी गहरे पारस्परिक संबंधों का विश्लेषण करके अलग-अलग लक्ष्यों और उद्देश्यों के बीच समरूपता और भिन्नता की पहचान की गई है।
रिपोर्ट में वकालत की गई है कि स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, जल और स्वच्छता के बुनियादी ढांचे, आवास और सामाजिक संरक्षण, जैसी गुणवत्तापूर्ण बुनियादी सेवाएं सर्व सुलभ कराना गरीबी उन्मूलन और मानव मात्र के उत्थान की एक पहली शर्त है। ऐसा करते समय दिव्यांगजनों और अन्य लाचार समूहों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कानूनी और सामाजिक भेदभाव समाप्त करने और मजदूर संघों, गैर-सरकारी संगठनों, महिला समूहों और अन्य सामुदायिक संगठनों को सशक्त करने पर नए सिरे से ध्यान देने की आवश्यकता बताई गई है क्योंकि यह सभी 2030 एजेंडा पर अमल के प्रयासों में महत्वपूर्ण साझीदार हैं।
रिपोर्ट तैयार करने वालों ने खाद्य एवं ऊर्जा प्रणालियों को परिवर्तन के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र माना है क्योंकि ये प्रणालियां इस समय जिस ढंग से काम कर रही हैं, विश्व को पर्यावरण विनाश की तरफ ले जा रही हैं, किन्तु मानव स्वास्थ्य और कल्याण के लिए इनके बीच बहुत निर्णायक संबंध भी है।
खाद्य प्रणालियों में बुनियादी ढांचे, सांस्कृतिक और सामाजिक नियमों तथा मौजूदा असंहवहनीय यथास्थिति को समर्थन दे रही नीतियों में व्यापक परिवर्तन करना होगा। इस समय करीब दो अरब लोग खाद्य असुरक्षा के शिकार हैं और 82 करोड़ लोग अल्पपोषित हैं। साथ ही दुनिया के लगभग सभी क्षेत्रों में सामान्य से अधिक वजन वाले व्यक्तियों की दर बढ़ रही थी। दुनिया भर में यह संख्या वयस्कों के लिए दो अरब और पांच वर्ष से छोटे बच्चों के लिए 4 करोड़ तक पहुंच गई है।
विकासशील देशों में अधिक मजबूत सामाजिक संरक्षण व्यवस्थाएं आवश्यक हैं ताकि खाद्य सुरक्षा एवं पोषण सुनिश्चित हो सके। देशों को अपनी खाद्य उत्पादन प्रणालियों का पर्यावरणीय प्रभाव, समूची मूल्य श्रृंखला को देखते हुए कम करना होगा। इसके लिए भोजन की बर्बादी तथा पशुओं से मिलने वाले प्रोटीन स्रोतों पर निर्भरता कम करनी होगी। विकासशील और विकसित दोनों तरह के देशों को सभी प्रकार के कुपोषण पर अधिक ध्यान देना होगा। इसमें सामान्य से अधिक वजन वाले व्यक्तियों की बढ़ती संख्या पर ध्यान देना भी शामिल है।
ऊर्जा प्रणाली में भी आमूल परिवर्तन करना होगा ताकि ऊर्जा सुलभता की खाई को पाटा जा सके। मुख्य रूप से अफ्रीका में सहारा के दक्षिणी क्षेत्र सहित विश्व में लगभग एक अरब लोगों के पास बिजली की सुविधा नहीं है और तीन अरब से अधिक लोग खाना पकाने के लिए प्रदूषण
फैलाने वाले ठोस ईंधनों पर निर्भर है जिसके कारण हर वर्ष करीब 38 लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है। इन खाइयों को पाटना होगा और साथ ही साथ ऊर्जा कुशलता बढ़ानी होगी, कार्बन संचय और भंडारण के बिना जीवाष्म से बिजली उत्पादन को धीरे-धीरे बंद करना होगा ताकि पेरिस समझौते की आकांक्षाओं के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था कार्बन उत्सर्जन मुक्त हो जाए।
कुल वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में आधुनिक अक्षय ऊर्जा का अनुपात पिछले दशक में औसतन 5.4 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ा है। 2009 से अक्षय स्रोतों से प्राप्त बिजली का मूल्य सौर फोटो वोल्टिक बैटरियों के लिए 77 प्रतिशत और समुद्र किनारे पवन ऊर्जा के लिए 38 प्रतिशत कम हुआ है। स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक निवेश लगातार पांच वर्ष तक प्रति वर्ष 300 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक रहा है।
किन्तु इस दिशा में अतिरिक्त वृद्धि में जीवाष्म ईंधन के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी व्यवस्थाओं के कारण रुकावट आई है जो वास्तविक आर्थिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी लागत से ध्यान भटकाती रही हैं।
अनुमान है कि 2050 तक विश्व की दो-तिहाई आबादी शहरों में निवास करने लगेगी। रिपोर्ट के अनुसार 2030 एजेंडा को हासिल करने के लिए अधिक सुगठित और ऐसे कार्यकुशल शहरों की आवश्यकता होगी जिनमें उत्तम सार्वजनिक परिवहन और अन्य बुनियादी सुविधाओं, सामाजिक सेवाओं की बेहतर व्यवस्था के साथ-साथ टैक्नॉलॉजी और प्रकृति आधारित उद्योगों सहित सम्मानजनक और टिकाऊ आजीविका देने वाली अर्थव्यवस्था की व्यवस्था हो। सहयोगी शहरों के बीच भागीदारी के नेटवर्क से नगरपालिका प्रमुखों को अच्छे तरीके अपनाने और विशेषज्ञता संचित करने में मदद मिलेगी और शहरों का विज्ञान विकसित करने में निवेश मददगार होगा।
वैज्ञानिकों ने इस बात पर बल दिया है कि वातावरण, वर्षावनों और महासागरों जैसे वैश्विक पर्यावरण के साझा अंगों को पारिस्थितिकी प्रणालियों और प्राकृतिक संसाधनों के अति उपयोगी स्रोतों के रूप में संरक्षण देना आवश्यक है। सरकारों, स्थानीय समुदायों, निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों एवं व्यक्तियों को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, पुनर्जीवन और संवहनीयता के लिए मिलकर काम करना अनिवार्य है। पर्यावरणीय परिसंपत्तियों का सटीक
आकलन करना पहला जरूरी कदम है और मूल्य निर्धारण, हस्तांतरण, नियमन तथा अन्य आर्थिक साधनों के जरिए उनका महत्व झलकना चाहिए।
विज्ञान आधारित निर्णय
सतत् विकास को आगे बढ़ाने में वैज्ञानिकों को प्रमुख भूमिका निभानी ही होगी। विश्वविद्यालयों, नीति-निर्धारकों और अनुसंधान के लिए धन देने वालों को 2030 एजेंडा के निर्देशित अनुसंधान के लिए समर्थन बढ़ाना होगा। इसके साथ-साथ संवहनीयता विज्ञान और अन्य विषयों में अनुसंधानकर्ताओं को मिलकर काम करना होगा ताकि विकास की समस्याएं सुलझा सकें, विज्ञान-नीति-समाज के बीच संपर्क को मजबूत कर सकें और समाज तथा नीति-निर्धारकों को विकास समस्याओं को सुलझाने के लिए उपयोगी सूचना दे सके।
रिपोर्ट में वर्तमान अनुसंधान प्राथमिकताओं में परिवर्तन करने, संवहनीयता विज्ञान के प्रति नए दृष्टिकोणों को समर्थन देने, विषयों के बीच भागीदारी पर बल देने तथा वैज्ञानिक संस्थाओं, विशेषकर विकासशील देशों में वैज्ञानिक संस्थाओं को समर्थन और संसाधन सुलभ कराने की वकालत की गई है।
विकास सहायता बजट में विश्व के विकासशील देशों में वैज्ञानिक क्षमता और सुलभता बढ़ाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों, अनुसंधान समूहों और लाइब्रेरियों को सतत् विकास लक्ष्यों के लिए विज्ञान में सीमाओं के आर-पार तथा अंतर-विषयी सहयोग बढ़ाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
ग्लोबल सस्टेनेबल डेवलेपमेंट रिपोर्ट
चार वर्षीय ग्लोबल सस्टेनेबल डेवलेपमेंट रिपोर्ट तैयार कराने का फैसला संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 2016 में किया था ताकि 2019 सतत् विकास लक्ष्य शिखर सम्मेलन को तथ्यों की जानकारी देने में मदद मिल सके। इस रिपोर्ट का मसौदा संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा नियुक्त 15 वैज्ञानिकों के एक स्वतंत्र समूह ने तैयार किया है।
प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान से जुड़े विविध विषयों और विकसित तथा विकासशील दोनों तरह के देशों के प्रतिनिधि वैज्ञानिक आज यह रिपोर्ट उपलब्ध करा रहे हैं जिसका शीर्षक है, ”द फ्यूचर इस नॉउ:साइंस फॉर अचीविंग सस्टेनेबल डेवलेपमेंट।” बर्न विश्वविद्यालय (स्विटजरलैंड)
में विकास एवं पर्यावरण केन्द्र के निदेशक पीटर मेजरली और इंडोनेशिया के पूर्व उप-नियोजन मंत्री एंडा मरनिनिन्गत्यास समूह के सह-अध्यक्ष हैं।
फ्यूचर इस नॉउ:साइंस फॉर अचीविंग सस्टेनेबल डेवलेपमेंट शीर्षक से पूरी रिपोर्ट यहां देखें : https://sustainabledevelopment.un.org/gsdr2019 वैज्ञानिकों की पूरी सूची यहां उपलब्ध है : https://sustainabledevelopment.un.org/gsdr2019