न्यूयॉर्क, 28 मार्च 2019
उद्घाटन भाषण:
महासचिव: संयुक्त राष्ट्र महासचिव के तौर पर मैं विश्व मौसम विज्ञान संगठन के कार्यों पर अत्यंत गर्व का अनुभव कर रहा हूं। संगठन एक ठोस, वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है जोकि यह स्पष्ट करने के लिए बहुत जरूरी है कि जलवायु किस प्रकार बदल रही है। संगठन भविष्य के लिए दिशानिर्देश भी प्रस्तुत करता है कि आने वाले समय में हमें किस प्रकार कार्रवाई करनी चाहिए।
मैं संगठन के इस वर्ष के कार्यों के लिए उसका आभार प्रकट करता हूं।
जलवायु परिवर्तन की तेज गति जारी है और इस रिपोर्ट को पढ़कर तीन बातें सामने आती हैं।
पहला, भूमि और महासागरों के तापमान, समुद्र के स्तर और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है।
दूसरा, हम मौसमी प्रकोप के असर को देख रहे हैं।
पिछले वर्ष अमेरिका में ही जलवायु और मौसम से जुड़ी 14 आपदाएं हुईं जिनमें से प्रत्येक में एक अरब डॉलर के बराबर नुकसान हुआ, जिसकी कुल लागत लगभग 49 अरब डॉलर है।
विश्व स्तर पर बाढ़ से साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए।
दक्षिण अफ्रीका में हाल के चक्रवात इदई के कारण हुआ नुकसान भी यह प्रदर्शित करता है।
तीसरा, सार्वजनिक स्वास्थ्य भी बहुत बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
इस शताब्दी की शुरुआत से अब तक गर्मी के प्रकोप से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 12.5 करोड़ हो गई है जिसके परिणाम घातक हैं।
अत्यधिक गर्मी और वायु प्रदूषण का मेल खतरनाक स्थिति तक पहुंच गया है, खास तौर से गर्मी अधिक लंबे समय तक, अधिक तीव्र और लगातार पड़ने लगी है।
इसलिए यह रिपोर्ट एक चेतावनी है।
यह रिपोर्ट हमारे उस कथन को पुख्ता करती है कि जलवायु परिवर्तन, उसके खिलाफ हमारे प्रयासों से भी तेज है।
यही कारण है कि हम 23 सितंबर को न्यूयॉर्क में जलवायु संबंधी पहल पर शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हम अधिक महत्वाकांक्षा के साथ जलवायु परिवर्तन से निपटें।
मैं नेताओं से कह रहा हूं: ‘सम्मेलन में भाषण के साथ नहीं, योजनाओं के साथ आएं।’
मैं उनसे कह रहा हूं कि वे ठोस, वास्तविक योजनाओं के साथ शिखर सम्मेलन में हिस्सा लें और हमारे लिए टिकाऊ मार्ग प्रशस्त करें। इन योजनाओं में यह प्रदर्शित होना चाहिए कि 2020 तक वे किस प्रकार पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों को बढ़ाएंगे और बताएंगे कि अगले दशक तक किस प्रकार हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 45 प्रतिशत कम कर सकते हैं और 2050 तक उसे बिल्कुल समाप्त कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएंगे। हम जिस स्थिति में हैं, उसमें इस शताब्दी के अंत तक सिर्फ 1.5 डिग्री तक रहना संभव नहीं लगता। इन प्रवृत्तियों को मोड़ने में कई वर्ष लगेंगे क्योंकि वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड का संकेंद्रण एकाएक गायब नहीं हो जाएगा। और हम उस स्थिति के बहुत निकट हैं जब आईपीसीसी में उल्लिखित परिदृश्य से भी बदतर स्थिति होगी।
विज्ञान इसी ओर इंगित करता है।
विश्व में युवा वर्ग इसी की मांग कर रहा है।
मैं चाहता हूं कि शिखर सम्मेलन से जलवायु संबंधी पहल के लाभ प्रदर्शित हों और यह भी कि प्रत्येक व्यक्ति को इसका लाभ मिल सकता है।
अधिक से अधिक संख्या में सरकारें, शहर और व्यवसाय जगत यह समझ रहा है कि जलवायु संबंधी समाधान हमारी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत कर सकते हैं, वायु के स्तर को सुधार सकते हैं और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
हम ऊर्जा, टिकाऊ कृषि, वन और महासागरों और जलवायु परिवर्तनों के प्रति सुदृढ़ता जैसे क्षेत्रों में अनेक प्रकार की पहल की अपेक्षा करते हैं।
मैं आशा करता हूं कि इससे नीतिगत पहल में सभी लिंगों के समावेश का महत्व भी स्पष्ट होगा।
और इससे न्यायप्रद संक्रमण के महत्व को भी बल मिलेगा- जहां कोई भी व्यक्ति जलवायु संबंधी पहल से अछूता न रहे।
इसी प्रकार से हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि परिवर्तन के दौर में कोई न पिछड़े।
यह स्पष्ट है कि परिवर्तन हो रहा है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इसकी रफ्तार उतनी ही तेज है जितनी हमें जरूरत है।
नई तकनीक जीवाश्म-ईंधन संचालित अर्थव्यवस्था की तुलना में कम लागत पर ऊर्जा प्रदान कर रही हैं।
सौर और तटवर्ती पवन ऊर्जा अब लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में ऊर्जा के सबसे सस्ते स्रोत हैं।
हम इस संक्रमण को तेज कर सकते हैं और हम ऐसा करेंगे भी।
इसका अर्थ यह है कि जीवाश्म ईंधन और उच्च उत्सर्जन वाले ईंधनों, गैर टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर सबसिडी को समाप्त किया जाए, और नवीकृत ऊर्जा, बिजली के वाहनों और जलवायु अनुकूल पद्धतियों की ओर मुड़ा जाए।
इसका अर्थ कार्बन प्राइजिंग है जोकि उत्सर्जन की वास्तविक लागत, जलवायु संबंधी संकट से लेकर वायु प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी जोखिम को प्रदर्शित करती है।
इसका अर्थ है, कोयला संयंत्रों को बंद करना, नए संयंत्रों की स्थापना को रोकना और उनमें कार्य करने वाले लोगों को बेहतर विकल्प प्रदान करना ताकि यह परिवर्तन न्यायप्रद, समावेशी और लाभपरक हो।
आने वाले वर्षों में विश्व में अवसंरचना पर व्यापक निवेश किया जाएगा।
हमें सुनिश्चित करना होगा कि वह टिकाऊ और जलवायु के अनुकूल हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम जलवायु परिवर्तन की विपत्ति का शिकार हो जाएंगे।
इस प्रकार हम अपरिवर्तनीय जलवायु परिवर्तन के जोखिम को टाल सकते हैं और 2030 की कार्यसूची का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। धन्यवाद।
प्र और उ:
प्रश्न: धन्यवाद… आपके कीमती वक्त के लिए धन्यवाद और इस महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता के लिए भी धन्यवाद। महासचिव महोदय से मेरा प्रश्न यह है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में अमेरिका और चीन का वास्तविक सहयोग अब कौन कर रहा है? (डोनाल्ड) ट्रंप प्रशासन में इस दिशा में काम लगभग समाप्त हो गया है या आपको ऐसा लगता है कि… मिल-जुलकर कुछ काम हो रहा है और चीन में भी ऐसा ही है? धन्यवाद।
महासचिव: मेरा ख्याल है कि वायु प्रदूषण के क्षेत्रों में कार्य करना संभव है, अमेरिकी प्रशासन के साथ, लेकिन जलवायु परिवर्तन के संबंध में अमेरिकी प्रशासन की स्थिति के बारे में हम सभी जानते हैं। लेकिन हमें विभिन्न शहरों, व्यवसाय जगत और देशों के प्रभावों को कम करके नहीं आंकना चाहिए जहां का नेतृत्व यह सुनिश्चित कर रहा है, अमेरिका में भी, कि जलवायु परिवर्तन के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता मौजूद है। चीन में भी जलवायु परिवर्तन पर प्रतिबद्धता प्रदर्शित हो रही है, और केटोविस बैठक में चीन बहुत रचनात्मक रहा है। हमें उम्मीद है कि चीन… जहां बहुत सारी समस्याएं हैं, हमें उम्मीद है कि चीन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेगा और 2020 तक उत्सर्जन को कम करने के संबंध में ठोस प्रतिबद्धता जताएगा।
प्रश्न: आपके धैर्य के लिए आपका धन्यवाद। मैं थॉम्पसन रॉयटर्स से सेबैस्टियन मालो हूं। मेरा प्रश्न महासचिव से है। रिपोर्ट अमेरिका का, विश्व स्तर पर आर्थिक नुकसानों का उल्लेख करती है और बताती है कि अमेरिका को सबसे ज्यादा नुकसान फ्लोरेस और माइकल नामक तूफानों से हुआ। इसकी अनुमानित लागत लगभग 50 अरब के बराबर है। इससे पता चलता है कि अमेरिका चरम मौसमी या प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित है। मैं आपसे जानना चाहता हूं कि इस पर अमेरिका का क्या रवैया है, मौजूदा राजनैतिक परिदृश्य के मद्देनजर अमेरिका को इससे क्या संदेश मिला है?
महासचिव: इससे स्पष्ट संकेत मिलता है। जलवायु परिवर्तन का विश्वव्यापी असर होगा, लेकिन विश्व के कुछ क्षेत्रों पर इसका अधिक नकारात्मक असर होगा, जैसे अमेरिका। यहां इसका काफी असर है और यह अधिक से अधिक प्रासंगिक होगा, अगर हम विश्व की इस प्रवृत्ति को मोड़ नहीं पाए। बेशक, हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि विकसित अर्थव्यवस्थाओ में जब तूफान आते है तो अधिक बड़ी संख्या में संपत्ति का नुकसान होता है। लेकिन दूसरी तरफ यह भी मत भूलें कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ऐसी आपदाओं से लड़ने की अधिक क्षमता और प्रतिरोधक क्षमता होती है। उदाहरण के लिए जैसा हमने मोजाम्बीक में हाल की स्थितियों में देखा कि वहां हताहतों की संख्या अधिक थी क्योंकि ऐसे देशों में आपदाओं से लड़ने की क्षमता तुलनात्मक रूप से कम होती है। जलवायु परिवर्तन के असर के अनुकूल वे अपनी क्षमता नहीं बढ़ा पाते।
प्रश्न: महासचिव महोदय, धन्यवाद। यह प्रश्न आपके लिए है। एक बड़ी चिंता इस बात की है, विशेषकर मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका के लोगों की, कि तापमान बढ़ रहा है और इसका असर उनकी कृषि पर पड़ रहा है, और इससे लोगों का प्रवास बढ़ रहा है क्योंकि वे सूखे या दूसरी समस्याओं से परेशान हैं। क्या आपको लगता है कि विभिन्न देशों के लिए यह एक- जैसा कि कहा जा रहा है, राष्ट्रीय सुरक्षा की समस्या है क्योंकि इससे प्रवास, आर्थिक अस्थिरता जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है?
महासचिव: उससे अधिक (माइक के बिना, सुनाई नहीं देने वाला), मेरा ख्याल है कि जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा के बीच स्पष्ट संबंध होता है। इस संबंध में अनेक प्रकार की पहल की गई है और मैं पूरी तरह से इससे सहमत हूं… यह स्पष्ट है कि प्राकृति आपदाएं, एक ओर, दक्षिण की प्राकृतिक आपदाएं, लेकिन विशेष से धीमी गति की… उदाहरण के लिए जमीनें तेजी से बंजर हो रही हैं और सूखा पड़ रहा है, बहुत अधिक सूखा पड़ रहा है और इन आपदाओं से व्यापक पैमाने पर विस्थापन होता है और विस्थापन से प्रवास बढ़ता है। इसी के साथ उत्पादकता और कृषि पर असर हो रहा है, भुखमरी का संकट मौजूद है और इससे सामाजिक अस्थिरता के बढ़ने का खतरा भी है। ऐसे कई रोचक विश्लेषण किए गए हैं जब हम इतिहास में मौसम के विकास और राजनैतिक मुद्दों को परस्पर संबंधित देखते हैं। फ्रांस की क्रांति से पहले मौसम के विकास को लेकर कई दिलचस्प विश्लेषण किए गए थे और कुछ विश्लेषण अरब स्प्रिंग और सूखे के असर को लेकर भी किए गए थे। मैं यह नहीं कहता कि इसका अर्थ यह है कि इन सभी परिस्थितियों का कारण जलवायु परिवर्तन था। यह कुछ अलग था। लेकिन यह स्पष्ट है कि जलवायु एवं सुरक्षा, जलवायु एवं स्थिरता और जलवायु एवं जन कल्याण के बीच कुछ संबंध है।
प्रश्न: धन्यवाद फरहान। आपका बहुत धन्यवाद। मैं रूडो मीडिया नेटवर्क से मजीद गली हूं। महासचिव महोदय, मैं संघर्षपूर्ण क्षेत्रों और मध्य पूर्व पर जलवायु परिवर्तन के असर के बारे में आपसे प्रश्न करना चाहता हूं। इस पर मौजूदा दौर में सबसे कम जानकारी मिलती है। आपने अभी अरब स्प्रिंग का जिक्र किया, शोधकर्ताओं का कहना है कि यह इस क्षेत्र में अस्थिरता के मुख्य कारणों में से एक है, विशेष रूप से सीरिया में। अभी हम चर्चा कर रहे हैं और ईरान, कुर्दिस्तान और इराक में बाढ़ आई हुई है। संयुक्त राष्ट्र इस क्षेत्र में पहले से कार्य कर रहा है। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या वह जलवायु परिवर्तन पर क्षेत्र की स्थानीय सरकारों, प्रशासन की मदद करेगा? क्या आप मानते हैं कि अधिक विकसित देश, औद्योगिक स्तर पर अधिक अमीर देशों की यह जिम्मेदारी है कि वे इन देशों, अल्प विकसित देशों की मदद करें, इन प्रभावों को कम करने में- जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी असर को कम करने में? धन्यवाद।
महासचिव: जब हम जलवायु परिवर्तन के लिए वित्त पोषण की बात करते हैं, तो इस बात पर भी जोर देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए ही नहीं, उसके अनुकूल नीतियां बनाने के लिए भी वित्त की जरूरत है। इसका अर्थ यह भी है कि हम उन विकासशील देशों की मदद करें जोकि कमजोर हैं। छोटे द्वीप देश, स्थलीय सीमा वाले देश, जहां सूखा और खतरनाक होता है। यह बहुत जरूरी है कि मौसम के अनुकूल नीतियां और परिस्थितियां बनाने के लिए वित्तीय सहयोग का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाए। उदाहरण के लिए मुझे याद है कि विश्व बैंक ने अनुकूलन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के शमन के लिए अगले पांच वर्षों के लिए 400 अरब डॉलर दिए हैं। इसलिए जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के साथ-साथ अनुकूलन भी हमारी उच्च प्राथमिकता है। दूसरी ओर यह स्पष्ट है कि उत्तर के देशों की भी जिम्मेदारी है और इसीलिए हम बहुत अधिक संघर्ष कर रहे हैं। शिखर सम्मेलन में यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि 2020 के अमल में आने के बाद विकासशील देशों को सहयोग देने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा 100 अरब डॉलर खर्च किए जाएं क्योंकि यह बहुत जरूरी है और इसीलिए हम हरित जलवायु कोष में फिर से योगदान देने की जरूरत पर इतना अधिक जोर दे रहे हैँ।