संयुक्त राष्ट्र महासचिव का संदेश
महासचिव : विकास एवं पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था में अधिक निवेश, समावेशी, समतापूर्ण वृद्धि की कुंजी
16 जुलाई, 2019 को उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच की मंत्रीस्तरीय बैठक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का वक्तव्य
पिछले चार वर्ष में उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच ने अपना सारा ध्यान सतत् विकास लक्ष्यों पर केन्द्रित रखा है। आने वाले दिनों में आप एक बार फिर 2030 सतत् विकास एजेंडा को आगे बढ़ाने के हमारे सामूहिक प्रयासों के विवरण पर गौर करेंगे।
इस वर्ष करीब 50 देश स्वेच्छा से राष्ट्रीय समीक्षाएं प्रस्तुत करेंगे। आप विशेष परिस्थितियों वाले देशों के नजरिए से छ: अलग-अलग सतत् विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति का आकलन भी करेंगे और यह भी देखेंगे कि सशक्तिकरण, समानता एवं समावेशन को समर्थन देने में सतत् विकास लक्ष्य कार्रवाई कितनी ताकतवर है।
हम इस सितम्बर में महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलनों और उच्च स्तरीय बैठकों की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। ऐसे में मैं समावेशन की आवश्यकता पर अधिक गहराई से विचार करना चाहूंगा। प्रमाण स्पष्ट हैं : विकास जब तक बराबर और समावेशी नहीं होगा टिकाऊ नहीं हो सकता और असमानता बढ़ने से दीर्घकालिक वृद्धि में रुकावट आती है।
हम देख रहे हैं कि वैश्वीकरण और तकनीक में तेज़ी से होते बदलावों के साथ-साथ असमानता कैसे आर्थिक चिंता बढ़ाती है, सार्वजनिक विश्वास घटाती है और सामाजिक सामंजस्य, मानव अधिकारों, शांति एवं संपन्नता को चोट पहुंचाती है। इसके साथ ही हम देख रहे हैं कि बराबरी और समावेशन से किस हद तक विशेषकर महिलाओं की स्थिति में बदलाव आ रहा है। इससे सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो रही है, स्थिरता बढ़ी है, सार्वजनिक क्षेत्र का प्रदर्शन सुधरा है और संस्थाओं की प्रभावशीलता बढ़ी है।
इन सब कारणों से ही 2030 के एजेंडा में समावेशन, सशक्तिकरण और बराबरी के लक्ष्यों के साथ-साथ किसी को पीछे न छूटने देने के लक्ष्यों को प्रधानता दी गई है। किन्तु एजेंडा को अपनाए जाने के चार वर्ष बाद भी वैश्विक तस्वीर चिंताजनक है।
यह सच है कि राजनीतिक और अन्य बाधाओं के बावजूद हमने उत्साजनक प्रगति की है। मैं अनेक सरकारों और समाज, कारोबारी समुदाय तथा अन्य अनेक व्यक्तियों के उस नेृतत्व को सलाम करता हूं जो 2030 की चुनौती के सामने डटे हुए हैं। किन्तु अभी तक हम पटरी पर नहीं आए हैं और इस दिशा में प्रयास बढ़ाने होंगे।
निपट गरीबी की दरें कम ज़रूर हो रही हैं पर इतनी तेज गति से नहीं कि हमारे 2030 के लक्ष्य को पूरा कर सके। देशों के बीच और उनके भीतर असमानता का स्तर अब भी बहुत चिंताजनक ढंग से उंचा है। लोग निश्चय ही सही सवाल कर रहे हैं कि ऐसा क्यों है कि मुट्ठी भर पुरुष मानवता की आधी संपत्ति के मालिक हैं? – वो भी केवल पुरुष, उनमें एक भी महिला नहीं है।
2015 के बाद से वैश्विक बेरोज़गारी स्तरों में कमी आई थी, लेकिन वेतन वृद्धि में ठहराव है। 30 प्रतिशत युवतियां और 13 प्रतिशत युवक शिक्षा, रोज़गार या प्रशिक्षण के दायरे से बाहर हैं और दुनिया भर में चार अरब लोगों को सामाजिक संरक्षण उपलब्ध नहीं है।
लाखों महिलाएं कार्य स्थल पर लैंगिक समानता एवं समकक्ष व्यवहार मांग रही हैं और हासिल भी कर रही हैं, पर उनसे भी कहीं अधिक महिलाएं रोज़गार के दायरे से ही बाहर हैं। दुनिया का कोई भी देश 2030 तक जैंडर बराबरी हासिल करने के लिए सही दिशा में नहीं बढ़ रहा है और महिलाएं अब भी भेदभाव करने वाले कानूनों, अवसरों तथा संरक्षण तक असमान पहुंच, बहुत अधिक हिंसा और विनाशकारी मान्यताओं एवं नज़रिए के कारण पिछड़ रही हैं।
उत्तम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, जल एवं स्वच्छता तथा अपने साधनों के भीतर स्वच्छ ऊर्जा की सुलभता में उत्साहजनक सुधार दिखाई दे रहा है। फिर भी आख़िर व्यक्ति तक, विशेषकर किशोरियों और दिव्यांगों जैसे समूहों तक पहुंचने के लिए हम आज भी जूझ रहे हैं।
निष्पक्ष एवं कारगर न्यायिक प्रणालियां समावेशी विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं फिर भी करीब 5 अरब लोगों की पहुंच से दूर है। सामाजिक संगठनों और मानव अधिकारों के हिमायतियों को बढ़ती धमकियों, बाधाओं और हिंसा का भी सामना करना पड़ रहा है। प्रवासी और शरणार्थी असुरक्षा, ख़राब व्यवहार और भेदभाव के असहनीय स्तरों के कारण कष्ट उठा रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन हमसे तेज गति से पैर फैला रहा है। हमने अपनी आंखों के सामने तीन प्रमुख रिकॉर्ड टूटते देखे हैं।
पहला रिकॉर्ड यह है कि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सघनता 30 से 50 लाख वर्षों में उच्चतम स्तर पर है और यह ऐसे समय हो रहा है जब पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री तक अधिक गर्म है और समुद्री सतह 10 से 20 गुना ऊंची है। दूसरे, विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2019 तक हमारी पृथ्वी पर 5 सबसे गर्म वर्ष होंगे। यूरोप, दक्षिण एशिया और कुछ अन्य स्थानों पर इस ग्रीष्म लहर के प्रमाण साफ देखे जा सकते हैं। तीसरा, समुद्र की सतह सिर्फ ऊपर ही नहीं उठ रही है, बल्कि बहुत तेज गति से उठ रही है। कुछ वैज्ञानिक तो अभी से अनुमान लगाने लगे हैं कि इस शताब्दी के अंत तक समुद्र की सतह का स्तर वर्तमान की तुलना में दोगुना ऊंचा हो जाएगा।
और हम सब जानते हैं कि इन सभी क्षेत्रों में सबसे ग़रीब और सबसे कमज़ोर लोग तथा देश सबसे अधिक तकलीफ उठाएंगे।
भविष्य की तरफ देखें तो बहुत कुछ करना बाकी है, किन्तु मैं समावेशन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए चार प्रमुख निष्कर्षों को उजागर करना चाहूंगा।
सबसे पहले हमें सतत् विकास लक्ष्यों के लिए सार्वजनिक और निजी निवेश में नाटकीय वृद्धि करनी होगी। रोकथाम के लिए यही हमारे बेहतरीन हथियार हैं। देशों को सरकारी विकास सहायता में गिरावट का रुख मोड़ना होगा और अदीस अबाबा कार्य एजेंडा के तहत अपने संकल्पों को ईमानदारी से पूरा करना होगा। हमें घरेलू संसाधन जुटाने के लिए विकासशील देशों को समर्थन देने के साथ-साथ पूंजी के अवैध प्रवाह, धन शोधन और कर चोरी से असरदार ढंग से निपटने के लिए वैश्विक कार्रवाई करनी होगी।
हमें वैश्विक स्वास्थ्य के लिए धन जुटाने का मजबूत तंत्र स्थापित करना होगा। हमें काम के भविष्य पर गौर करते हुए ऐसी उत्तम शिक्षा में भारी निवेश की आवश्यकता होगी जिसमें न सिर्फ सिखाने पर जोर हो, बल्कि यह बताया जाए कि सीखना कैसे है और जीवन भर इसे कैसे करते रहना है। इसके साथ-साथ चौथी औद्योगिक क्रांति एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में प्रगति के संदर्भ में नई पीढ़ी के सामाजिक संरक्षण प्रयास अपनाने होंगे। हमें निजी क्षेत्र के विकास एवं दीर्घकालिक बाजार निवेश के लिए ऐसी उपयुक्त परिस्थितियां पैदा करनी होगी जिनसे ग्रामीण क्षेत्रों में निरन्तर आर्थिक वृद्धि, गरिमापूर्ण काम और संपन्नता लाई जा सके।
दूसरे, वैश्विक जलवायु कार्रवाई को इस ढंग से आगे बढ़ाना चाहिए जिससे असमानता कम हो। पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था अपनाने से विश्व भर में 2030 तक 2.4 करोड़ नए रोज़गार पैदा होने के साथ-साथ स्थिर एवं स्वस्थ पर्यावरण पर निर्भर 1.2 अरब रोजगार सुरक्षित रखे जा सकेंगे। किन्तु ऐसा करने के लिए हमें लोगों को 21वीं शताब्दी के कौशल हासिल करने में मदद देनी होगी क्योंकि दुनिया अब जीवाष्म ईंधन को पीछे छोड़कर कम कार्बन उत्सर्जक, जलवायु परिवर्तन सहनशील बुनियादी ढांचों में निवेश कर रहा है, जिनमें इस प्रकार के कौशलों की आवश्यकता होगी।
हम ग्रीन क्लाइमेट फंड में धन की पूरी भरपाई करने एवं जलवायु कार्रवाई तथा 2020 तक विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन का असर कम करने और उससे बचाव के तरीके अपनाने के लिए सार्वजनिक एवं निजी स्रोतों से प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने का संकल्प पूरा करने के लिए देशों के सहयोग पर निर्भर हैं।
तीसरे, सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन के लिए ग्लोबल कॉम्पैक्ट पर अमल तेज़ करना होगा। हमें याद रखना होगा कि सीमाओं को सुरक्षित करने के महत्वपूर्ण मुद्दे से परे प्रवासन नीतियों में लोगों के अधिकारों का ख़्याल रखा जाना चाहिए। माता-पिता और बच्चे दुनिया के कुछ सबसे लाचार लोगों में से हैं। ये सभी लोग अपने मूल देशों और गंतव्य देशों में सतत् विकास में अत्यंत महत्पूर्ण योगदान कर सकते हैं।
चौथे, किसी को पीछे न छूटने देने एवं सतत् विकास लक्ष्य हासिल करने के प्रयासों का सीधा संबंध मानव अधिकारों, कूटनीति और रोकथाम से है। उदाहरण के लिए अनुमान है कि 2030 में निपट गरीबी में रह रहने वाले बचे-खुचे लोगों में से करीब 85 प्रतिशत, नाजुक स्थिति वाले, संघर्ष प्रभावित देशों के निवासी होंगे। हमें संघर्षों और विस्थापन को समाप्त करने तथा उनके मूल कारणों से निपटने के लिए मजबूत वैश्विक संकल्प की आवश्यकता है। आइए हम सब न्याय, सहनशीलता, लैंगिक समानता और मानव अधिकारों के पक्ष में एकजुट होकर खड़े हो जाएं।
इस मंच से उपजे अन्य निष्कर्षों की जड़ें समावेशन की आवश्यकता और सितम्बर से पहले महत्वपूर्ण उपयोगी सोच प्रदान करने की गहरी आवश्यकता में है।
विश्व भर के नेता अनेक महत्वपूर्ण बैठकों के लिए यहां एकत्र होंगे। जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन, सतत विकास लक्ष्य शिखर सम्मेलन, सबके लिए स्वास्थ्य तथा सुलभता पर उच्च स्तरीय बैठक, विकास के लिए वित्त व्यवस्था के बारे में उच्च स्तरीय संवाद और लघु द्वीपीय
विकासशील देशों को समर्थन देने के लिए हमारे संकल्पों और भागीदारी तथासामोआ (SAMOA) मार्ग की समीक्षा बैठक।
मैं नेताओं से आग्रह कर रहा हूं कि सितम्बर के शिखर सम्मेलनों में वे लच्छेदार भाषणों के साथ नहीं, बल्कि ऐसी ठोस कार्य योजनाओं और संकल्पों के साथ आएं जिनसे 2030 एजेंडा और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते पर अमल को तेज किया जा सके।
दुनिया के लोग अब आधे-अधूरे उपाय या खोखले वायदे नहीं चाहते। वे ऐसा मूल बदलाव चाहते हैं जो निष्पक्ष और टिकाऊ हो।
आइए सितम्बर में होने वाले इन वैश्विक सम्मेलनों का उपयोग महत्वाकांक्षाएं बढ़ाने और समावेशन की आवश्यकता को उजागर करने के लिए करें। आइए हम मिलकर जनता और पृथ्वी के हित में सेवाएं प्रदान करने और काम करने के दशक का शुभारंभ करें।