21 मार्च, 2019
यूएनआईसी/ प्रेस विज्ञप्ति/ 036-2019
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का संदेश
विकासशील देशों के बीच सहयोग
महासचिव : जलवायु, जैंडर, बढ़ती असमानता 2030 एजेंडा अपनाने में प्रमुख बाधाएं
20 मार्च को ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में विकासशील देशों के बीच सहयोग के बारे में दूसरे उच्चस्तरीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में महासचिव एंटोनियो गुटेरेश का वक्तव्य :
मैं इस सम्मेलन की मेजबानी के लिए अर्जेंटीना की सरकार और जनता का आभार व्यक्त करता हूं।
40 वर्ष पहले विकासशील देशों के बीच सहयोग के बारे में एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग के संवर्धन और क्रियान्वयन के लिए ब्यूनस आयर्स कार्य योजना बनाई गई। तब से ब्यूनस आयर्स कार्य योजना यानी बीएपीए, राष्ट्रीय स्वामित्व, बराबरी, शर्तहीन सिद्धांतों के आधार पर विकासशील देशों के बीच सहयोग के लिए ब्यूनस आयर्स प्लान ऑफ एक्शन यानी बीएपीए बुनियाद और संदर्भ बिन्दु दोनों का काम करती रही है।
बीएपीए ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की चाल बदल दी। उसने विकास की समान चुनौतियों का सामना कर रहे देशों के बीच ज्ञान और उपयुक्त टैक्नॉलॉजी के आधार पर सहयोग के विभिन्न रूपों का महत्व उजागर किया। विश्व भर के विकासशील हिस्से में हमने बीएपीए के संदर्भ में उल्लेखनीय प्रगति देखी है। कुछ हद तक विकासशील देशों के बीच सहयोग के बल पर ही लाखों महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को निपट गरीबी के दलदल से निकाला जा सका है। विकासशील देशों ने अब तक की कुछ सबसे तेज आर्थिक वृद्धि दरें हासिल की हैं और टिकाऊ विकास के लिए वैश्विक मानक तय किए हैं।
यहां ब्यूनस आयर्स में एकत्र होकर हम इस लंबे सफर को मान्यता देते हैं और उसका उल्लास मनाते हैं जो हमने साथ मिलकर पूरा किया है । किन्तु हम अपनी साझी चुनौतियों को भी स्वीकार करते हैं। हम यहां यह सुनिश्चित करने के लिए एकत्र हुए हैं कि विकासशील देशों के बीच सहयोग सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को लागू करते हुए वैश्विक विकास की उभरती सच्चाइयों और विकासशील देशों की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप हो। हमारे पास विकासशील देशों के बीच सहयोग के लिए ढांचा विकसित करने और मजबूत करने, प्रणालियों और साधनों को सुधारने, पारदर्शिता बढ़ाने और जवाबदेही मजबूत करने का अवसर आ गया है।
मैं पांच ऐसे मुद्दे देख रहा हूँ जो पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को लागू करने और 2030 का एजेंडा हासिल करने के लिए प्रमुख रहेंगे। विकासशील देशों के बीच सहयोग से उन सबका समाधान
निकल सकता है। सबसे पहले तो देशों के बीच और उनके भीतर बढ़ती असमानता विश्वास कम कर रही है और अन्याय की भावना बढ़ा रही है। वैश्वीकरण ने बहुत से लोगों को गरीबी से मुक्ति दिलाई है पर उसके लाभों का वितरण समान रूप से नहीं हुआ है और गरीबों तथा लाचारों ने इसकी लागत का बेहिसाब बोझ उठाया है। सहयोग के बल पर विकासशील देश एक-दूसरे से सीख सकते हैं और अधिक तेजी से वृद्धि हासिल कर सकते हैं, आमदनी में अंतर खत्म कर सकते हैं और समावेशी सशक्त समाजों की रचना कर सकते हैं।
दूसरे, जलवायु परिवर्तन हमारे दौर का एक निर्णायक मुद्दा है और हम दौड़ में पिछड़ते जा रहे हैं। 2018 अब तक चौथा सबसे गर्म वर्ष था और प्राकृतिक आपदाओं की मार लगभग हर क्षेत्र पर पड़ रही है। इसीलिए, मैं विश्व भर के नेताओं को सितम्बर में न्यूयॉर्क में जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में एकजुट कर रहा हूं। मैं इन नेताओं से आग्रह कर रहा हूं कि वे ऐसी ठोस और व्यावहारिक योजनाएं लेकर आएं जो जलवायु परिवर्तन का असर कम करने उसके अनुरूप ढलने, वित्त और नवाचार के बारे में महत्कांक्षा बढ़ाएं। हमें अगले दशक में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 43 प्रतिशत कमी करने के लक्ष्य के अनुरूप 2020 तक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान बढ़ाने होंगे।
हमें पर्यावरण अनुकूल वित्तीय व्यवस्था को समर्थन देने और जलवायु कार्रवाई में निवेश को अरबों से बढ़ाकर खरबों तक ले जाने के लिए बुनियादी बदलाव करने होंगे। हरित जलवायु निधि में सभी संसाधन पूरे करके उसे काम करने लायक बनाना होगा। विकासशील देशों में प्रभाव कम करने और उसके अनुरूप ढलने सहित जलवायु कार्रवाई के लिए 2020 तक प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने का संकल्प पूरा करना ही होगा।
परस्पर समर्थन और सर्वोत्तम विधियों का आदान-प्रदान सुनिश्चित करने, जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों से जूझ रहे विकासशील देशों और समुदायों में उनके अनुरूप ढलने की क्षमता और सहनशीलता बढ़ाने के लिए विकासशील देशों के बीच सहयोग जरूरी है। विकासशील देशों के बीच सहयोग जीवाश्म ईंधन पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं को ऐसी रणनीतियां अपनाने में भी सहयोग दे सकता है, जो सतत् विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों को पुष्ट करती हों।
तीसरे, बुनियादी ढांचागत सुविधाओं और ऊर्जा आवश्यकताओं को बहुत अधिक बढ़ाना होगा क्योंकि दुनिया भर में विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण तेजी से हुआ है। 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र के 2030 तक शहरी हो जाने का अनुमान है, जिसका अभी तक निर्माण भी नहीं हुआ है। अगर हमसे इसमें कुछ चूक हो गई तो हम ऐसे उच्च उत्सर्जन वाले भविष्य में जीने को अभिशप्त होंगे जिसके प्रभाव अति विनाशकारी हो सकते हैं। किन्तु यदि हमने बुनियादी ढांचा सही ढंग से खड़ा किया तो वह विकास में सहयोग; औद्योगिक कायाकल्प और वृद्धि; सीमा के आर-पार व्यापार और निवेश;
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने और उसके अनुरूप ढलने; और सतत् विकास के लिए एक अवसर होगा।
चौथा, जैंडर को सतत् विकास लक्ष्यों के लिए एक महत्वपूर्ण बिन्दु माना गया है क्योंकि यह विभिन्न परस्पर जुड़े हुए मुद्दों पर मिलकर काम करने के अवसर प्रदान करता है। यदि हमें सफल होना है तो सभी प्रयासों में इसे प्रमुख स्थान देना होगा। पिछले 40 वर्ष में हमने महिलाओं के लिए उल्लेखनीय प्रगति देखी है। पहले से अधिक लड़कियां स्कूल में पढ़ रही हैं; अधिक महिलाएं सवेतन काम कर रही हैं; महिला जननांग भंग और बाल विवाह जैसी हानिकारक प्रथाओं में गिरावट का रुख है, किन्तु यह प्रगति संपूर्ण नहीं है। वास्तव में हमारे प्रयासों को पीछे धकेला जा रहा है और कुछ मामलों में जैंडर बराबरी की खाई चौड़ी होती जा रही है।
इसका असर हम सब पर पड़ता है क्योंकि जहां कहीं भी राजनीति में महिलाओं को बेहतर प्रतिनिधित्व मिला है, वहां सामाजिक संरक्षण में सुधार हुआ है और विकास पर खर्च बढ़ा है। जब जमीन और कर्ज तक महिलाओं की पहुंच हो जाती है तो फसल की पैदावार बढ़ती है। लड़कियां शिक्षित हो जाती हैं तो वे अपने समुदायों में अधिक योगदान करने लगती हैं और गरीबी का कुचक्र तोड़ देती हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिन देशों में संसद में, राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थाओं में और किसानों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, वे विश्व भर में विकासशील देश ही हैं।
पांचवां, बहुपक्षीय विकास व्यवस्था को इतने बेहतर ढंग से स्थापित किया जाना चाहिए कि वह विकासशील देशों के बीच सहयोग को समर्थन दे और 2030 के एजेंडा पर अमल करे। विकासशील देशों के बीच सहयोग पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय ढंग से विकसित हुआ है। किन्तु संयुक्त राष्ट्र सहित बहुपक्षीय संस्थाएं उससे कदम मिलाकर नहीं चल सकी हैं। मैं सदस्य देशों का आभारी हूं कि उन्होंने इस सम्मेलन के लिए परिणाम दस्तावेज में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को मान्यता दी है। आप हमें जो जिम्मेदारी सौंप रहे हैं, उसका हम निर्वहन करेंगे । आप मेरे इस व्यक्तिगत संकल्प पर भरोसा कर सकते हैं कि मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में चल रहे सुधारों से विकासशील देशों के बीच सहयोग के लिए हमारे समर्थन में नई जान आएगी।
हमें सतत् विकास के लिए वित्तीय तंत्र का रुख भी बदलना होगा और 2030 के एजेंडा को पूरा करने के लिए खरबों डॉलर देने होंगे। विकासशील देशों के बीच सहयोग न तो सरकारी विकास सहायता का कभी विकल्प हो सकता है और न ही अदिस अबाबा कार्य योजना तथा पेरिस समझौते में निर्धारित विश्व के विकसित देशों की जिम्मेदारियों का स्थान ले सकता है। विकासशील देशों के बीच सहयोग में नए किस्म की भागीदारियों की रचना के जरिए और प्रयासों की पहुंच बढ़ाकर, युवाओं, प्रबुद्ध समाज, निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत और अन्य क्षेत्रों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसमें नई टैक्नॉलॉजी और डिजिटीकरण की क्षमताओं का उपयोग किया जाना चाहिए जिनसे अवसर पैदा होते हैं और समावेशिता को बढ़ावा
मिलता है। विकासशील देशों के बीच सहयोग, विकासशील जगत के सभी देशों की वैश्विक कार्रवाई है, जिसका लाभ सबसे कम विकसित देशों सहित हरेक देश को होगा। परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, बांटने या सिखाने के लिए हर देश, हर साझीदार के पास कुछ न कुछ है।
यह सम्मेलन तो एक शुरुआत है। इस वर्ष बाद में सितम्बर में एक सप्ताह तक शासनाध्यक्ष सतत् विकास लक्ष्य शिखर सम्मेलन और जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के लिए न्यूयॉर्क में एकत्र होंगे। वे सबके लिए स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार, सतत् विकास के लिए धन की व्यवस्था और लघु द्विपीय विकासशील देशों के समर्थन में वैश्विक भागीदारी पर चर्चा करेंगे।
इन सभी सम्मेलनों का उद्देश्य 2030 एजेंडा और पेरिस समझौते पर अमल की गति तेज करना है। इन दोनों का जन्म हम सबको बांधे रखने वाले समान हितों पर सहमति की कोख से हुआ है। अब समय आ गया है कि हम एक बार फिर इस साझी जमीन पर कदम बढ़ाएं और ठोस तथा कायाकल्प करने वाली कार्रवाई करें। हम मिलकर सतत् विकास लक्ष्य हासिल कर सकते हैं, जलवायु परिवर्तन को मात दे सकते हैं और दुनिया भर के लोगों के जीवन का कायाकल्प कर सकते हैं।