प्रारम्भिक वक्तव्य
ब्यूनस आयरस, 29 नवम्बर, 2018
महासचिव: Buenas tardes a todos. Es un gran placer estar aquí en Buenos Aires. Si me permiten yo no hable español, hablo portuñol, y es muy difícil hacer la intervención en portuñol, entonces, iré a hacer algunas afirmaciones en inglés, pero después estoy disponible para contestar a las preguntas que sean hechas en español.
मैं जानता हूँ कि बहुत से लोग सवाल करेंगे कि आज जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के भीतर विश्वास का अभाव इतना अधिक है, महाशक्तियों के बीच भी, चाहे सुरक्षा का मामला हो या व्यापार का, टकराव इतना अधिक है तो जी-20 शिखर सम्मेलन के आयोजन की क्या कोई तुक है? मेरा जवाब साफ है कि विश्वास की इसी कमी के कारण, टकराव एवं आक्रोश के जोखिम के कारण ही इस तरह के फोरम का काम करते रहने बेहद आवश्यक है।
मैं राष्ट्रपति माक्री और अर्जेन्टीना की सरकार की ह्रदय से सराहना करना चाहता हूँ कि उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन के लिए इतनी दृढ़ता और संकल्प के साथ काम किया है हाँलाकि हम सब जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की स्थिति कितनी जटिल है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के नज़रिए से दो मुख्य मुद्दे हैं-मैं तो कहूँगा कि दो मुख्य संदेश हैं – जिन्हें मैं इस सम्मेलन में उठाना चाहूँगा।
. पहले का सीधा संबंध अविश्वास के उस स्तर से है जिसका मैंने अभी ज़िक्र किया, क्योंकि यह अविश्वास न सिर्फ देशों के बीच है, बल्कि आमतौर पर जनता और संस्थाओं- उनकी सरकारों, उनकी संसदों-के बीच तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच भी बहुत अधिक अविश्वास है।
वैश्वीकरण और टैक्नॉलॉजी में आए बदलावों ने मानव समुदाय को बेशक बहुत से लाभ दिए हैं- वैश्विक अर्थव्यव्स्था में वृद्धि, वैश्विक व्यापार में वृद्धि, निपट गरीबी के स्तर में कमी के मामले में भी सुधार हुआ है। किंतु हम हर जगह देख रहें हैं कि जिन्हें वैश्वीकरण से क्षति हुई है, जो पीछे छूट गए हैं – लोग, क्षेत्र, सेक्टर – वे क्रुद्ध हैं, हताश हैं। वे कई बार सोच लेते हैं कि इस दुनिय़ा के पिछड़े हिस्सों में उनकी सरकारों ने, या यूएन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने उनकी समस्याओं के समाधान, उनकी कठिनाइयों के निराकरण के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं। मेरे विचार में यह बहुत आवश्यक है कि दुनिया के विभिन्न देश एकजुट होकर समुचित वैश्वीकरण अर्थात ऐसे वैश्वीकरण के लिए साझी रणनीति तैयार करें जिसमें कोई पीछे छूटने न पाए।
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में सतत् विकास लक्ष्यों के साथ अनुमोदित एजेंडा 2030 का एकदम यही उद्देश्य है। सतत् विकास लक्ष्यों का उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य और महासागर संरक्षण के लिए असाधारण प्रयास, जलावायु परिवर्तन का सामना, दुनिया भर में प्रशासन की समस्याओं का समाधान करना है। मुझे आशा है कि इस सम्मेलन में नेताओं को एजेंडा 2030 को समर्थन देने, सतत् विकास लक्ष्यों को समर्थन देने के लिए अधिक सशक्त संकल्प लेने का अवसर मिलेगा और यह समर्थन आज पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। यदि हम वर्तमान रुख को देखें और 2030 के लिए स्थापित लक्ष्यों पर गौर करें तो यही लगता है कि वर्तमान गति से चलते रहे तो आधे रास्ते तक ही पहुँच पाएंगे। इसका सीधा सा अर्थ है कि हमें सरकारों से अधिक संकल्प चाहिए, हमें निजी क्षेत्र से अधिक संकल्प चाहिए, हमें न सिर्फ विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए समर्थन से अधिक संसाधन जुटाने की ज़रूरत है, बल्कि विकासशील देशों के भीतर भी संसाधन जुटाने होंगे और उसके लिए ज़बर्दस्त राजनीतिक संकल्प की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि यह संकल्प पाने के लिए, विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की उपस्थिति से जी-20 यही मंच है।
दूसरे संदेश का संबंध जलवायु परिवर्तन से है। जलवायु परिवर्तन हम से तेज़ गति से हो रहा है और हम बेहद कठिन स्थिति का सामना कर रहे हैं।
जब हम देखते हैं कि ज़मीनी स्थिति क्या है, जब हम देखते हैं कि महासागरों का तापमान अनुमान से कहीं तेज़ गति से बढ़ रहा है, जब हम देखते हैं कि हर गर्मी में आर्कटिक का हिम आच्छादित क्षेत्र अभूतपूर्व स्तरों तक कम हो रहा है, जब हम देखते हैं कि हिमनद पिघल रहे हैं, प्रवालों का रंग उड़ रहा है और जब हम देखते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, अधिक तीव्र, अधिक नाटकीय और मानव के लिए अधिक विनाशकारी हो रही हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि वास्तविक स्थिति अब तक की गई भविष्यवाणियों से अधिक नाटकीय है। हालात हर जगह अनुमान से अधिक विकट होते जा रहे हैं। हमारा अनुमान है कि सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं के मामले में 2030 तक यथास्थिति रखने की लागत 210 खरब अमेरिकी $ के आसपास होगी। अतः मुझे पक्का विश्वास है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। सच तो यह है कि पेरिस समझौते के बाद जब भविष्यवाणियाँ तो सुनाई देनी बंद हो गईं और वास्तविकता अनुमान से भी बदतर होती गई, तो राजनीतिक संकल्प कुछ कमज़ोर पड़ने लगा। यदि हम इस दौड़ में हारना नहीं चाहते तो हमे उस राजनीतिक संकल्प को दुनिया में हर जगह – सरकार के स्तर पर, शहरों के स्तर पर, कारोबारी समुदाय के स्तर पर, और समाजों के स्तर पर भी वापस लाना होगा। यह हार मानव समुदाय के लिए बेहद त्रासद होगी।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि पेरिस समझौते का पूरी तरह पालन करना होगा। किंतु देशों ने पेरिस समझौते में जो वायदे किए थे सिर्फ उन्हें पूरा कर देना पर्याप्त नहीं होगा। आप सब जानते हैं कि उद्देश्य तो शताब्दी के अंत तक तापमान वृद्धि को दो डिग्री से नीचे रखना और यथासंभव 1.5 डिग्री के आसपास सीमित रखना है। हाल के वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री के करीब रखना वास्तव में जरूरी है। पेरिस में किए गए वायदों के बावजूद शताब्दी के अंत तक तापमान वृद्धि का स्तर तीन डिग्री से अधिक रहने वाला है। इसका सीधा सा अर्थ है कि पेरिस के वायदों को पूरी तरह, अक्षरशः पूरा करना होगा, जो हम अभी तक नहीं कर रहे हैं और उससे भी आगे की सोचना होगा।
यह जी-20 सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन से जुड़े पक्षों के सम्मेलन काटोविच सीओपी24 से पहले हो रहा है। वहाँ पेरिस समझौते के कार्रवाई कार्यक्रम पर आगे बढ़ना परम आवश्यक होगा और यह भी स्पष्ट है कि लोगों को जलवायु परिवर्तन के वित्तीय पहलुओं के बारे में फिर आश्वस्त करना होगा। 2020 से आगे 100 अरब $ का जो वायदा किया गया था उसे निभाना होगा और साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि देश जलवायु लक्ष्यों में वृद्धि स्वीकार करने को तैयार हो जाएं।
मुझे विश्वास है कि ऐसा कर पाना संभव है। मेरा मानना है कि तकनीक हमारे साथ है- हम देख रहे हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा अब सस्ती और जीवाश्म ईंधन की तुलना में अधिक स्पर्धी हो गई है, हम देख रहे हैं कि पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था सर्वोत्तम अर्थव्यवस्था होती जा रही है और मुझे कोई संदेह नहीं है कि जो पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था नहीं अपनाएंगे उनकी अर्थव्यवस्था का भविष्य अंधेरा होगा और आने वाले दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी स्थिति अच्छी नहीं होगी। किंतु इस बारे में राजनीतिक संकल्पशक्ति का अभाव है। इसलिए यहाँ आना और राजनीतिक नेताओं से यह कहना महत्वपूर्ण है कि हर किसी के लिए यह समझना कितना ज़रूरी है कि पेरिस समझौते को पूरी तरह लागू करने की गारंटी देने के लिए यह करो या मरो का पल है। मैं अगले वर्ष सितम्बर में जलवायु शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा हूँ और 2020 में जब समझौते की समीक्षा होगी तब हमें कार्रवाई के लिए कहीं अधिक महत्वाकाँक्षी कार्यक्रम अपनाना होगा ताकि हम जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगा सकें और गारंटी दे सकें कि हम एक स्वस्थ पृथ्वी पर जी सकेंगे।
प्र&उ:
प्रश्न: पैट्रिक जिलिस्पी, ब्लूमबर्ग न्यूज़। दो प्रश्न अंग्रेज़ी में। क्या आपको यमन में संभावित युद्धविराम का कोई निश्चित कार्यक्रम दिखाई देता है? मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि संयुक्त राष्ट्र शान से कहता है कि कठिनाई के दौर में भी वार्ता जारी रखता है, तो क्या आप इस बात से चिंतित हैं कि जी 20 सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति के बीच निर्धारित मुलाकात अब नहीं होगी?
महासचिवः जहाँ तक यमन का प्रश्न है हम प्रयास कर रहे हैं। मैंने आज सुबह ही मार्टिन ग्रिफिथ से सम्पर्क किया है। वे सना, रियाध और अबू धाबी के चक्कर लगा रहे हैं। मैं बहुत अधिक उम्मीदें नहीं जगाना चाहता, पर हम बहुत मेहनत कर रहे हैं ताकि इसी वर्ष के भीतर सार्थक बातचीत शुरु कर सकें। पर आप जानते ही हैं कि कुछ झटके लगें हैं, बमबारी जारी है और हौसी पक्ष की तरफ से सऊदी अरब पर फिर मिसाइल हमले हुए हैं. मतलब बहुत से झटके लग रहे हैं फिर भी हम बहुत कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह शायद इसी वर्ष शांति वार्ता शुरु हो जाए।
किंतु मैं बहुत अधिक उम्मीदें नहीं जगाना चाहता क्योंकि आप जानते हैं कि जब बहुत अधिक आशाएं जगा देते हैं तो कभी-कभी हमारे प्रयासों की उतनी सफलता नहीं मिलती।
दूसरी तरफ, अज़ोव सागर के करीब स्थिति भड़कने से मैं बहुत चिंतित हूँ। मुझे आशा है कि उसे शांत किया जा सकेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए। मैं समझता हूँ कि अभी कितना तनाव है, पर मुझे आशा है अंतर्राष्ट्रीय समुदाय स्थिति को और भड़कने से रोकने और इसके लिए कोई तंत्र स्थापित करने तथा कानून के दायरे में सार्थक संवाद शुरु कराने में समर्थ होगा। रूस और यूक्रेन के बीच टकराव को बिगड़ने से रोका जा सकेगा और यदि संभव हो तो अधिक सकारात्मक दिशा में हम जा सकेंगे।
प्रश्नः महासचिव महोदय, मैं एलान फिशर, अल जज़ीरा इंग्लिश से। क्या मैं जान सकता हूँ कि इस जी-20 शिखर सम्मेलन पर जमाल खाशोगी की हत्या से उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय विवाद, पिछले कुछ दिनों में यूक्रेन की घटनाओं, अमेरिका और चीन के बीच जारी विवाद के साए से आप कितना चिंतित हैं और आप कैसे उम्मीद करते हैं कि देश खुद को प्राथमिकता देने के रवैये के बजाय मिलकर काम कर पाएंगे?
महासचिवः मैं भी आपसे एकदम यही प्रश्न करना चाहता हूँ। यही तो हमारा मकसद है और यही कठिनाई भी है। किंतु एक बात साफ है। हम वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बिना प्रवासन के मुद्दे के प्रबंधन की क्षमता का अभाव है और यह साफ है कि वैश्विक चुनौतियों से अकेले-अकेले, देश-दर-देश निपटने का कोई तरीका नहीं है। वैश्विक चुनौतियों के लिए हमें वैश्विक स्तर पर कार्रवाई करनी होगी। अतः तमाम समस्याओं, तमाम कठिनाइयों और तमाम विरोधाभासों के बावजूद मेरा मानना कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जुटा कर ही कुछ नतीजे निकल सकते हैं। यह एक ऐसा अवसर है जहाँ अवसर मौजूद हैं और जैसा कि मैंने कहा, मैंने इस आयोजन को साकार करने औऱ कुछ प्रगति होने देने के पक्के इरादे के लिए अर्जेंटीना सरकार की सराहना की है।
प्रश्नः फिर भी क्या आप जमाल खाशोगी की हत्या जैसी घटनाओं से चिंतित हैं….
महासचिवः यह तो साफ ज़ाहिर है कि आपने जिन घटनाओं का उल्लेख किया है उनसे जी-20 सम्मेलन में मदद नहीं मिलती, जहाँ लोग वैश्विक अर्थव्यवस्था की समस्याओं, जलावायु परिवर्तन और अन्य समस्याओं पर ज़्यादा असरदार ढंग से विचार कर सकते हैं। किंतु यह भी स्पष्ट है कि हमें अपने दौर की मुख्य समस्याओं का समाधान करना सिर्फ इसलिए नहीं रोक देना चाहिए कि कुछ और घटनाएं हो रही है जो परेशान करती हैं और हम में से बहुतों के लिए गंभीर चिंता उत्पन्न कर रही हैं।
धन्यवाद।