श्री प्रकाश जावड़ेकर, अध्यक्ष सीओपी 14 और इब्राहिम थियाव, कार्यकारी सचिव, यूएनसीसीडी का संयुक्त वक्तव्य
सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धियां
नई दिल्ली, 13 सितम्बर 2019 – विश्व समुदाय ने समझ लिया है कि भूमि का अनुपजाऊ होना/ मरुस्थलीकरण विश्व के सभी क्षेत्रों में अनेक देशों के लिए प्रमुख आर्थिक, सामाजिक और पर्यारण संबंधी समस्या है। उपजाऊ भूमि को बचाने के लिए अभूतपूर्व वैश्विक अभियान के अंतर्गत सम्बद्ध देश भूमि को अनुपजाऊ होने से रोकने संबंधी सतत् विकास लक्ष्य के उद्देश्य 2030 तक हासिल करने को कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय लक्ष्य बनाने पर सहमत हुए हैं।
विभिन्न देश भूमि की पट्टेदारी में जैंडर असमानता सहित पट्टेदारी की असुरक्षा समाप्त करेंगे, भूमि से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भूमि को फिर उपजाऊ बनाने को प्रोत्साहन देंगे और देश के स्तर पर इन फैसलों को लागू करने के लिए निजी और सार्वजनिक स्रोतों से धन जुटाने के अभिनव उपाय अपनाएंगे।
कार्रवाई की सूचना देने के फ्रेमवर्क में सुधार किया जाएगा ताकि जैंडर बराबरी, सूखे से निपटने के उपायों और भूमि के अनुपजाऊ होने पर खपत और उत्पादन के स्वरूपों और प्रवाह के प्रभाव जैसे प्रमुख मुद्दों पर प्रगति की जानकारी मिल सके। दिल्ली घोषणा के माध्यम से मंत्रियों ने मानव स्वास्थ्य और आरोग्य, पारिस्थितिकी की सेहत सुधारने और शांति एवं सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से नए प्रयासों या गठबंधनों के प्रति समर्थन व्यक्त किया।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 9 सितम्बर को सेंट विन्सेंट और ग्रेनेडाइन्स के प्रधानमंत्री श्री रॉल्फ गोनसाल्वेज़ और संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव अमीना मोहम्मद की उपस्थिति में मंत्रीस्तरीय खंड का शुभारंभ किया, किंतु सम्मेलन की शुरुआत सोमवार 2 सितम्बर को हो गई थी।
श्री मोदी ने अपने संबोधन में भूमि को अनुपजाऊ होने से बचाने में पानी की भूमिका पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा,“ मैं यूएनसीसीडी के नेतृत्व से आग्रह करता हूँ कि वे वैश्विक जल
कार्रवाई एजेंडा तय करें जो भूमि को अनपजाऊ होने से बचाने की रणनीति का प्रमुख अंग है”। उन्होंने बताया कि सरकार ने फसल की पैदावार बढ़ाने के विभिन्न उपाय अपनाकर किसानों की आमदनी दोगुनी करने का कार्यक्रम शुरु किया है। इनमें भूमि को फिर उपजाऊ बनाने और सूक्ष्म सिंचाई के उपाय शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘हम हर बूँद अधिक फसल के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं’। माननीय प्रधानमंत्री ने वैश्विक भूमि एजेंडा के प्रति भारत का संकल्प दोहराया। उन्होंने घोषणा की कि भारत अब से लेकर 2030 तक 2.1 करोड़ हैक्टेयर के बजाय अब 2.6 करोड़ हैक्टेयर अनुपजाऊ हो चुकी भूमि को उपजाऊ बनाएगा।
भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु पर्यावरण मंत्री एवं सीओपी14 के अध्यक्ष श्री प्रकाश जावड़ेकर ने भूमि को अनुपजाऊ होने से रोकने संबंधी सतत् विकास लक्ष्य 2030 तक हासिल कर लेने की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने सीओपी14 की अध्यक्षता के दो वर्ष के कार्यकाल में यूएनसीसीडी को असरदार नेतृत्व देने का भी वायदा किया।
मरुस्थलीकरण रोकने से सम्बद्ध संयुक्त राष्ट्र समझौते यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव श्री इब्राहिम थियाव ने कहा, “मुझे लगता है कि इस सीओपी में हमने आम लोगों को केन्द्र में रख कर फैसले लिए”। सम्बद्ध देशों ने भूमि पट्टेदारी अधिकारों पर उल्लेखनीय निर्णय लिया और युवाओं तथा महिलाओं के अनूठे स्वरों और अनुभवों का लाभ उठाया।
सीओपी14 ने सूखे के जोखिमों को कम करने और उनके प्रबंधन तथा उसका सामना करने की क्षमता बेहतर करने के वैश्विक प्रयासों को मज़बूत करने का ऐतिहासिक निर्णय भी लिया।
श्री थियाव ने कहा,“ हम इस सत्य के प्रति सचेत हो गए हैं कि हमें अधिक बार-बार गंभीर सूखे का सामना करना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन से ये समस्या और विकट हो जाएगी”।
श्री थियाव ने जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के लिए सीओपी14 के योगदान का भी उल्लेख किया। उनका कहना था कि बड़े पैमाने पर भूमि को फिर उपजाऊ बनाना, जलवायु और जैवविविधता की क्षति से उत्पन्न वैश्विक संकट से उबरने का एक सबसे सस्ता समाधान है।
श्री थियाव ने यह भी कहा कि न्यूयॉर्क में होने वाले शिखर सम्मेलनों के लिए स्पष्ट संदेश है, “भूमि में निवेश करने से अनेक अवसरों के द्वार खुल जाते हैं।”
उन्होंने कहा कि प्रकृति से संचालित समाधानों के ज़रिए भूमि को फिर उपजाऊ बनाने के वैश्विक प्रयास, रियो समझौते के लिए लाभदायक और विश्व की अनेक गंभीर समस्याओं के समाधान में सहायक होंगे।
अंत में श्री थियाव ने भूमि को उपजाऊ बनाने के प्रयासों में निजी क्षेत्र की भूमिका की तरफ ध्यान खींचा जिसमें सतत् मूल्य श्रंखला को प्रोत्साहन के साथ-साथ उसे आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन देना शामिल है। इन प्रोत्साहनों में भूमि के टिकाऊ प्रबंधन के लिए नए उपायों के समर्थन में नियम बनाना और संसाधनों के संरक्षण उन्हें फिर उपयोग लायक बनाने और टिकाऊ उपयोग के लिए इनाम देना शामिल है।
सम्मेलन में करीब 9000 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। देशों के मंत्रियों, संयुक्त राष्ट्र और अंतर-सरकारी संस्थाओं के प्रमुख, युवा, स्थानीय प्रशासनों, कारोबारी नेताओं और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया, जिसका विषय था “भूमि में निवेश, अवसरों के द्वार खोलना।”
सीओपी14 आज सम्पन्न हो रहा है। इसमें 10 दिन तक 11 उच्च स्तरीय, 30 समिति स्तर की और 170 से अधिक सम्बद्ध पक्षों की बैठकों के साथ 44 प्रदर्शनियों का आयोजन हुआ।
संपादकों के लिए नोट:
अतिरिक्त कथन
गुस्तावों फोनेस्का, जीईएफ के डायरेक्टर प्रोग्राम्स: “सम्बद्ध पक्षों ने यूएनसीसीडी एजेंडा के लिए जीईएफ के निरंतर समर्थन का स्वागत किया और जीईएफ को अपने प्रभाव डालने वाले कार्यक्रमों के ज़रिए आमूल परिवर्तनकारी भूमि आधारित कार्रवाइयों पर ध्यान देने का नया आदेश दिया। हम सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा को देखते हुए देशों को भूमि को फिर उपजाऊ बनाने के अपने स्वैच्छिक लक्ष्य हासिल करने में मदद देने के लिए मिलकर काम करने को उत्सुक हैं।”
भारत और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
भारत संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण नियंत्रण समझौते से संबद्ध पक्ष है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार का नोडल मंत्रालय है, जो देश में समझौते के अमल पर नजर रखता है। भारत की जनसंख्या 2050 तक 1.7 अरब तक पहुंच जाने का अनुमान है। करीब 2 अरब हैक्टेयर भूमि अनुपजाऊ हो चुकी है, जो भारत के क्षेत्रफल से तीन गुना से अधिक है, किन्तु इसे वापस उपजाऊ बनाया जा सकता है। भारत उन पहले देशों में शामिल है, जिन्होंने भूमि की उपजाऊ क्षमता नष्ट होने से बचाने के 2030 सतत् विकास लक्ष्य के प्रति संकल्प व्यक्त किया था।
भारत दो वर्ष तक वर्तमान सीओपी14 का अध्यक्ष है । कॉप के पिछले सत्रों की तरह ही उच्च स्तरीय खंड में चर्चा हुई कि कैसे वार्ताओं के लिए राजनीतिक समर्थन बढ़ाया जा सके और समझौते पर अमल में सम्बद्ध पक्षों का अधिक से अधिक सहयोग लिया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र मरूस्थीकरण नियंत्रण समझौता (यूएनसीसीडी)
यह भूमि के कुशल प्रबंधन से जुड़ा अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। यह जनता, समुदायों और देशेां को सम्पदा का सृजन करने, अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने और पर्याप्त खाद्य सामग्री, जल एवं ऊर्जा को संचित करने में मदद देता है। यह सुनिश्चित करता है कि भूमि का उपयोग करने वालों को टिकाऊ भूमि प्रबंधन के लिए सामर्थ्यकारी माहौल मिले। समझौते से जुड़े 197 पक्ष साझेदारी के माध्यम से सूखे से तुरन्त और कारगर ढंग से निपटने के लिए मजबूत व्यवस्थाएं स्थापित करते हैं और विज्ञान सतत् विकास लक्ष्यों को समन्वित करने, उन्हें हासिल करने की गति तेज करने में मदद करता है, जलवायु परिवर्तन को सहने की क्षमता पैदा करता है, तथा जैव-विविधता क्षय को रोकता है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें- सुश्री वागाकि विश्न्युस्की. wwischnewski@unccd.int, Cell: +91 74284 94332 श्री अभिषेक श्रीवास्तव asrivatsava@unccd.int, Cell: +91 99991 80790