संयुक्त राष्ट्र महासचिव का संदेश
महिलाओं की स्थिति से संबद्ध आयोग (कमीशन ऑन द स्टेटस ऑफ वूमैन, सीएसडब्ल्यू)
महासचिव : शांति और विकास के लिए जैंडर बराबरी की आवश्यकता, सत्ता संबंधों में असंतुलन समाप्त करने के लिए ‘हम पीछे नहीं मुड़ेंगे‘
न्यूयॉर्क में 11 मार्च को महिलाओं की स्थिति से संबद्ध आयोग की 63वीं बैठक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरेस का संबोधन (सबसे पहले इथियोपियाई एयरलाइंस के विमान की 10 मार्च को हुई दुर्घटना के बारे में टिप्पणी)
आज संयुक्त राष्ट्र में आते हुए आपने देखा होगा कि हमारे ध्वज झुके हुए हैं। दुनिया भर में बहुत से लोगों और विशेषकर संयुक्त राष्ट्र के लिए यह एक दुखद दिन है।
कल इथियोपिया में हुई त्रासद विमान दुर्घटना में सभी सवार मारे गए। ताजा सूचना के अनुसार इनमें संयुक्त राष्ट्र के हमारे कम से कम 21 सहयोगी शामिल हैं। इनके अलावा बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम कर रहे थे और जिनकी संख्या का अभी पता नहीं चल सका है। यह एक वैश्विक दुर्घटना है और संयुक्त राष्ट्र शोक की इस घड़ी में सबके साथ है। मैं दुर्घटना के शिकार सभी लोगों के परिवारों और प्रियजनों, इथियोपिया की सरकार और जनता तथा इस त्रासदी से प्रभावित सभी लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं।
मुश्किल की इस घड़ी में हम मौके पर सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और सहायता, परामर्श तथा अन्य किसी भी प्रकार की मदद जुटा रहे हैं।
हमारे इन साथियों में दुनिया के सभी हिस्सों के निवासी और विविध प्रकार की विशेषज्ञता रखने वाले, महिला और पुरुष, जूनियर प्रोफेशनल एवं अनुभवी अधिकारी शामिल थे। इन सब में एक भावना समान थी। यह भावना थी, दुनिया के लोगों की सेवा करना और इसे हम सबके लिए एक बेहतर स्थान बनाना।
यही वह भावना है जो हमें हर रोज संयुक्त राष्ट्र में बुलाती है और आज आपको महासभा के इस कक्ष में लेकर आई है। इस महत्वपूर्ण बैठक का आरंभ करने से पहले आइए हम सेवा की उनकी भावना को जीवंत रखते हुए अपने साथियों की स्मृतियों का सम्मान करें।
धन्यवाद।
यह महिलाओं की स्थिति से संबद्ध आयोग है। किन्तु इसका एक और नाम भी हो सकता था : सत्ता की स्थिति से संबद्ध आयोग, क्योंकि असली मुद्दा वही है। जैंडर बराबरी मूल रूप से सत्ता का प्रश्न है।
हजारों वर्ष से पुरुष प्रधान विश्व की पुरुष प्रधान संस्कृति ने महिलाओं को हाशिए पर, उपेक्षित और मौन रखा है।
मुझे हाल ही में कैम्ब्रिज की इतिहासकार मैरी बियर्ड की दिलचस्प पुस्तक पढ़ने को मिली। इसमें बताया गया है कि पाश्चात्य संस्कृति में पुरुष प्रधान जड़ें कितनी गहरी हैं और उससे आज के गहरे सत्ता असंतुलन को समझने में मदद मिलती है।
मेरा मानना है कि दुनिया के अन्य क्षेत्रों पर भी यही बात लागू होती है। सत्य तो यह है कि प्राचीन यूनान और रोम के प्रसिद्ध ग्रंथों में बोलने का काम मूल रूप से पुरुषों के लिए परिभाषित किया गया है। होमर के महाग्रंथ के आरंभ में ओडीसियस का पुत्र अपनी माता से कहता है कि चुप रहो और जाकर बुनाई करो। ऐरिस्टोफेनिस ने महिलाओं के नेतृत्व में शासन व्यवस्था के बारे में एक नाटक लिखा जो वास्तव में एक प्रहसन था।
बेशक हम जानते हैं कि यह प्राचीन इतिहास का अंग नहीं है।
आपने शायद एख कार्टून देखा होगा जिसमें सम्मेलन की मेज पर बैठे कुछ अधिकारियों में सभी पुरुषों के बीच एकमात्र महिला है। महिला ने एक महत्वपूर्ण बात कही और उसके बाद लंबी चुप्पी छाई रही। कार्टून के अंत में बॉस, पाइप से धुंआ खींचते हुए कहता है, ”यह एक बहुत जबर्दस्त सुझाव है सुश्री ट्रिग्स शायद इनमें से कोई पुरुष इसे रखना चाहेगा।”
मुझे अंदेशा है कि आपमें से बहुतों को इसी तरह के अनुभव हुए होंगे।
आज हमें स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि क्या बदलने की आवश्यकता है। जैसा कि प्रोफेसर बियर्ड ने लिखा है, ”यदि सत्ता की संरचना में महिलाओं को उनका पूर्ण स्थान नहीं मिलता तो हमें महिलाओं को नहीं बल्कि सत्ता के उस तंत्र को करने की आवश्यकता है।”
मैं उस परिवर्तन की अगुवाई करने के लिए आपको धन्यवाद देता हूं और अपनी आवाज उठाने के लिए आपका शुक्रिया अदा करता हूं। हमें आपकी यहां आवश्यकता है और हमें आपकी अभी आवश्यकता है। हमें आपकी आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। मैं स्वीकार करना चाहता हूं कि हमारी दुनिया कुछ भटक गई है।
अब मैं एक ड्राइवर के रूप में अपने अनुभव को याद कर सकता हूं। मैं जानता हूं कि पुरुषों के लिए कभी-कभी यह मानना मुश्किल होता है कि वे कब भटक गए थे। हम इसे स्वीकार नहीं करना चाहते। हमें दिशा के बारे में पूछने में मुश्किल होती है और नक्शा देखना भी बुरा लगता है।
सच्चाई यह है कि आज हमारी दुनिया को एक दिशा की आवश्यकता है और मैं जानता हूं कि आप यह रास्ता दिखाने में मदद कर सकते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम पूरी रफ्तार से चल रहे हैं…. एक ही वक्त में दोनों दिशाओं में। लोग अधिक जुड़े हुए हैं फिर भी समाजों में बिखराव बढ़ रहा है। बड़ी चुनौतियां – जलवायु परिवर्तन, असुरक्षा, संघर्ष- बाहर की तरफ फैल रही हैं।
फिर भी लोग अंतर्मुखी हो रहे हैं। आज वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। इसके बावजूद बहुपक्षवाद- अंतर्राष्ट्रीय समस्या समाधान- पहले से कहीं अधिक खतरे में है।
अब इस विडम्बना को भी जी रहे हैं, आखिरकार जैंडर बराबरी के हिमायती इतने बड़े पैमाने पर एकजुट हो रहे हैं जितने पहले कभी नहीं हुए। आप वैश्विक आंदोलन खड़े कर रहे हैं, जागरूकता बढ़ा रहे हैं, परिवर्तन प्रेरित कर रहे हैं।
इसके साथ ही कुछ और भी हो रहा है और हमें उसकी चर्चा इस तरह करनी चाहिए। दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों को पीछे धकेला जा रहा है और उन्हें पछाड़ने का यह काम गहरे, व्यापक और अनथक स्तर पर हो रहा है। हम देख रहे हैं कि महिलाओं, विशेषकर मानव अधिकार रक्षकों और राजनीतिक पदों की उम्मीदवार महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ रही है। अपनी आवाज बुलंद करने वाली महिलाओं के ऑनलाइन उत्पीड़न और प्रताड़ना की घटनाएं हो रही हैं।
कुछ देशों में हत्याओं की दरें कम हो रही हैं, किन्तु महिलाओं की हत्याएं बढ़ रही हैं। कुछ अन्य देशों में हम देख रहे हैं कि घरेलू हिंसा अथवा महिला जननांग भंग की घटनाओं के प्रति कानूनी संरक्षण वापस लिया जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अभी-अभी पता लगाया है कि पिछले वर्ष ही पुरुषों की तुलना में महिलाओं के रोजगार में रहने की संभावना 26 प्रतिशत कम थी। एक-तिहाई से भी कम महिलाएं मैनेजर हैं, भले ही वे ज्यादा पढ़ी-लिखी हों।
हम सब जानते हैं कि महिलाओं की भागीदारी से शांति समझौते अधिक टिकाऊ होते हैं, फिर भी महिलाओं को वार्ताकार दलों में शामिल कराने के लिए हमें अब भी जूझना पड़ता है। इस एजेंडा की मुखर समर्थक सरकारें भी वहां अपने शब्दों को कार्रवाई का रूप देने में असफल रहती हैं, जहां इसकी आवश्यकता होती है। इस बीच, हमें चौड़ी और निरन्तर डिजिटल खाइयां भी दिखाई देती हैं। प्रजनन अधिकारों के लिए कठिन लड़ाई चल रही है। यौन और जैंडर आधारित हिंसा का चलन भी भयंकर रूप में दिखाई दे रहा है।
राष्ट्रवादी, लोक-लुभावन और किफायती एजेंडे सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर रहे हैं जिनसे असमानता बढ़ रही है, समुदाय बिखर रहे हैं, महिलाओं के अधिकारों पर अंकुश लग रहे हैं और महत्वपूर्ण सेवाओं में कटौती हो रही है।
हमें संघर्ष करना पड़ेगा और इस संघर्ष में हमें मिलकर जीतना ही होगा। तो आइए बुलंद और स्पष्ट शब्दों में कहें : हम मैदान नहीं छोड़ेंगे, हम पीछे नहीं मुड़ेंगे, हम धकेलने वालों को धकेलकर आगे बढ़ेंगे और हम धकेलते रहेंगे।
बड़े पैमाने पर बदलाव के लिए, त्वरित बदलाव के लिए और सार्थक बदलाव के लिए हमारी दुनिया को सत्ता संबंधों में असंतुलन दूर करने से शुरुआत करनी होगी।
इसी कारण यहां संयुक्त राष्ट्र में मैं जैंडर बराबरी के लिए जोर दे रहा हूं और मुझे आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हम अच्छी प्रगति कर रहे हैं। आज यदि आप मेरे सीनियर मैनेजमेंट ग्रुप को देखें तो वहां महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। सुश्री ट्रिग अब अकेली नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। आप दुनिया भर पर नजर डालेंगे तो हमारे रेजीडेंट कॉर्डिनेटर्स में भी आपको बराबरी नजर आएगी जो जमीनी स्तर पर हमारे शीर्ष अधिकारी हैं। ऐसा भी संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में पहली बार हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में शांति गतिविधियों में आज सबसे अधिक महिला प्रमुख और उप-प्रमुख हैं, फिर भी अभी लंबा रास्ता तय करना है। हम 2021 तक सभी सीनियर पदों पर और 2028 तक संयुक्त राष्ट्र के पूरे तंत्र में यह बराबरी लाने के रास्ते पर बढ़ रहे हैं।
किन्तु यह सफर झटकों से मुक्त नहीं है। मुझे बताया गया है कि इस तंत्र के भीतर भी कुछ आलोचकों ने क्षमता की दुहाई देने की हिम्मत की है। दशकों पहले अपने देश में मेरे अपने राजनीतिक दल के भीतर जब मैंने अधिक सशक्तिकरण का जोर लगाया था, तब भी इस तरह की बातें सुनी थीं।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर में कहा गया है : ”कर्मचारियों की नियुक्ति करते समय सबसे अधिक ध्यान कुशलता, दक्षता और ईमानदारी के सर्वोच्च मानकों के पालन की आवश्यकता का रखा जाएगा।”
असल बात यह है कि पुरुष और महिलाएं समान रूप से कुशल, समान रूप से दक्ष और समान रूप से ईमानदार हैं। यह तो वर्तमान स्थिति है जिसका दंड महिलाओं और समूचे संगठन को भुगतना पड़ रहा है।
इन तथ्यों को देखते हुए मैं एक बहुत स्पष्ट और वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि यह आलोचक दक्षता की जो बात कर रहे हैं, वो पूरी तरह और कोरी बकवास है।
अब मैं इन आलोचकों से कहना चाहता हूं कि क्या वे वास्तव में यह मानते हैं कि पुरुष औसत महिलाओं से अधिक दक्ष होते हैं? यदि नहीं तो चार्टर का सम्मान करने के लिए बराबरी परम आवश्यक है।
महिलाओं की तमाम दक्षता का लाभ उठाने का एक ही रास्ता है कि बराबरी हासिल की जाए। महासभा ने 1975 में ही अपने एक प्रस्ताव में यह बात स्पष्ट कर दी थी जिसमें कहा गया है, ”संयुक्त राष्ट्र की भर्ती नीति को संचालित करने वाला एक प्रमुख सिद्धांत महिलाओं और पुरुषों के बीच पदों का समान बंटवारा होना चाहिए।” यह एक बहुत जबर्दस्त सिफारिश थी जिसे दुर्भाग्यवश दशकों तक लगभग पूरी तरह भुला दिया गया।
और हमें यह भी स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि यह बराबरी संख्याओं से कहीं आगे है। हम बहुत बड़ी संख्या में उत्कृष्ट, प्रतिभाशाली और योग्य महिलाओं के लिए अधिक अवसरों की दिशा में कहीं अधिक बुनियादी कारण से प्रयत्नशील हैं। मैं तो यहां तक कहूंगा कि एक अधिक स्वार्थी कारण से।
क्योंकि इसमें हम सबकी भलाई है। महिलाएं जब वार्ता की मेज पर बैठती हैं तो टिकाऊ शांति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। महिलाओं को जब श्रम शक्ति में बराबर अवसर दिए जाते हैं तो अर्थव्यवस्थाओं को खरबों का लाभ हो सकता है। हाल में ऐस पूर्वानुमान भी लगाया गया था। मानवीय सहायता में जब जैंडर बराबरी का ध्यान रखा जाता है तो महत्वपूर्ण सहायता दूर तक जाती है और नर-नारी, लड़कियों-लड़कों, हर एक पर अधिक गहरा असर डालती है।
बराबरी का मतलब शांति सुनिश्चित करने, मानव अधिकारों को आगे बढ़ाने और सतत् विकास लक्ष्य हासिल करने में अधिक कारगर होने से है। सरल शब्दों में कहें तो जब हम महिलाओं को इस प्रक्रिया से बाहर रखते हैं तो कीमत सबको चुकानी पड़ती है। जब हम महिलाओं को शामिल करते हैं तो जीत सारी दुनिया की होती है।
इस वर्ष हमारा एक मुख्य विषय है-सतत् बुनियादी ढांचा है जो एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, किन्तु आप बुनियादी ढांचे पर सबसे विशाल दृष्टि से यानी बेहतर समाजों के निर्माण की दृष्टि से ध्यान दे रहे हैं।
हम जानते हैं कि समाज के सभी पहलुओं में महिलाओं की भागीदारी बराबर होनी चाहिए। तभी हम बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं। इसका अर्थ है सत्ता समीकरणों को बदलना, खाइयों को बंद करना, पूर्वाग्रह मिटाना, मुश्किल से हासिल उपलब्धियों को बचाने के लिए संघर्ष करना और पहले से अधिक सफलता हासिल करना। इन सबसे अधिक बड़ी बात यह विश्वास करना है कि हम कभी हार नहीं मानेंगे।
मुझे आशा है और यह आशा देन है-आपकी, आपके संकल्प की, आपकी ऊर्जा, आपके उदाहरण और आपकी सहनशक्ति की। मैं आपके साथ हूं। मुझे गर्व है कि मैं नारीवादी हूं। आपको मेरा पूरा समर्थन हासिल है।
अगले वर्ष हम बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन की 25वीं वर्षगांठ, महिला, शांति एवं सुरक्षा के बारे में सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1325 (2000) की 20वीं वर्षगांठ और संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ मनाने वाले हैं जिससे हमारे विश्व को दिशा मिलती रहेगी।
आप उस मंजिल की तरफ हमारा मार्गदर्शन करते रहें, जहां महिलाओं और पुरुषों के लिए बराबर अधिकार, बराबर स्वतंत्रता और बराबर सत्ता सुलभ हो। आपकी आवश्यकता हमें पहले से कहीं अधिक है।