नई दिल्ली, 9 सितम्बर, 2019 : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि भूमि को बंजर होने से बचाने के प्रमुख उपाय के रूप में वैश्विक जल कार्रवाई एजेंडा तय किया जाए। उन्होंने घोषणा की कि भारत बंजर हो चुकी 50 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को 2030 तक फिर उपजाऊ बनाएगा। इस प्रकार भारत में कुल 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि को फिर उपजाऊ किया जाएगा।
श्री मोदी ने मरूस्थलीकरण रोकने संबंधी संयुक्त राष्ट्र समझौते के पक्षों के 14वें सम्मेलन में मंत्री स्तरीय बैठक का उद्घाटन करते हुए यह घोषणा की। सम्मेलन का शुभारंभ एक सप्ताह पहले नई दिल्ली में हुआ था।
भूमि को फिर उपजाऊ बनाने का भारत का संकल्प भूमि को बंजर न होने देने के उसके संकल्प का अंग है। रेगिस्तान को फैलने से रोकना यानी भूमि को बंजर न होने देना यूएनसीसीडी के अंतर्गत प्रमुख प्रयास है। अब तक भूमि क्षरण के शिकार 170 में से 122 देश भूमि की उपजाऊ शक्ति खोने से बचाने का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प ले चुके हैं।
भारत की यह पहल दो पिछले प्रयासों की पूरक है और उनकी पुष्टि करती है। पिछले पक्ष सम्मेलनों में शुरू किए गए ये प्रयास हैं : कोरिया गणराज्य की चांगवोन पहल और तुर्की की अंकारा पहल।
भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री और वर्तमान कॉप 14 के अध्यक्ष प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा की कि दिल्ली घोषणा का अनुमोदन सम्मेलन के विशेष मंत्री स्तरीय खंड में किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इस खंड का उद्देश्य मरूस्थलीकरण, भूमि की उपजाऊ शक्ति खोने और सूखे के मानवीय चेहरे की तरफ ध्यान खींचना है। उन्होंने सभी संबद्ध पक्षों को आश्वस्त किया कि, ”अगले दो वर्ष तक भारत सीओपी का अध्यक्ष रहेगा। इस दौरान हम आप सबके साथ मिलकर काम करेंगे और मैं विश्वास दिलाना चाहता हूं कि हमारे सही कदम भावी पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को बेहतर रूप देने में हमारी मदद करेंगे।”
सेंट विन्सेंट द ग्रेनाडाइन्स के प्रधानमंत्री रॉल्फ गोंजाल्वेज़ ने कहा, ”विश्व भर के देशों की सामूहिक प्रतिक्रिया हमारे सामने मौजूद विशाल चुनौती का सामना करने के लिए इतनी उपयुक्त या पर्याप्त नहीं रही है कि आपदा से बचा जा सके। अत: मरूस्थलीकरण रोकने के संयुक्त राष्ट्र समझौते के अंतर्गत आयोजित कॉप 14 सम्मेलन हमारे जीवन, रहन-सहन और उत्पादन की बेहतर और टिकाऊ परिस्थिति की मानवता की तलाश में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।”
संयुक्त राष्ट्र की उप-महासचिव अमीना मोहम्मद ने सम्मेलन में प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया और कहा, ”अब हमारे पास लक्ष्य तैयार करने की बैठकों पर अगले दस वर्ष खर्च कर देने का विकल्प नहीं है। हमारे पास सिर्फ दो सप्ताह का समय है जिसमें हमें अपने साझा एजेंडा को सही दिशा में ले जाना है ताकि पृथ्वी पर दो डिग्री से कम वक्र के साथ कार्रवाई और प्रभाव की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।”
उन्होंने याद दिलाया कि 80 करोड़ लोग आज भी भुखमरी के शिकार हैं और फसलों की पैदावार गिर रही है, जबकि आने वाले दशकों में खाद्य सामग्री की मांग में 50 प्रतिशत वृद्धि होना तय है। 15 करोड़ हेक्टेयर खेतीहर भूमि को फिर उपजाऊ बनाने से हर वर्ष 20 करोड़ और लोगों का पेट भरा जा सकता है। ऐसा करने से अधिक शक्ति मिलेगी, छोटे संबद्ध पक्षों के लिए वार्षिक आय में 30 अरब डॉलर से अधिक की वृद्धि होगी और प्रति वर्ष पहले से दो गीगाटन अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को धरती में दबाया जा सकेगा।
उन्होंने यह भी कहा, ”ऐसे निर्णायक दौर में हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक दायित्वों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। इसके लिए विशाल प्रयासों की आवश्यकता है, किन्तु हम सब मिलकर जलवायु एजेंडा की आकांक्षाओं को उठा सकते हैं और पूरा कर सकते हैं।”
संयुक्त राष्ट्र उप-महासचिव का यह भी कहना था, ”जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन पहला और अंतिम पड़ाव नहीं है। यह ठोस कार्रवाई की दिशा में पहला कदम है और हम अपने सदस्य देशों से संकल्प मांग रहे हैं। मैं कहना चाहूंगी कि वित्तीय क्षेत्र का ठोस सहयोग वास्तव में महत्वपूर्ण है। यदि हमारे पास संसाधन न हुए तो रुकावट आएगी। यह हमारा कहना है कि सार्वजनिक राशि मिलनी चाहिए। हमारा यह कहना सही नहीं होगा कि ग्रीन क्लाइमेट फंड में पैसा नहीं है। पैसा है और देश योगदान कर रहे हैं जो अगले दो सप्ताह में होने वाले जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के लिए अच्छा संकेत है। इस प्रकार का निरन्तर सहयोग ही अपेक्षित है।”
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम छियाव ने दुनिया भर में बंजर होती जमीन के वर्तमान और अंतर-पीढ़ीगत प्रभावों की चर्चा करते हुए दुनिया में जन्म ले रहे बच्चों की दुर्दशा की ओर इशारा किया, ”इनका भविष्य केवल माता-पिता के नहीं समूची मानवता के हाथ में है।”
उन्होंने ताजा वैज्ञानिक आकलनों का हवाला दिया जिनमें बताया गया है कि भूमि के बंजर होने से क्या नुकसान हुआ है। उन्होंने जल्द ही न्यूयॉर्क में होने वाले 5 संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलनों के लिए परिवर्तन का आधार तैयार करने में वर्तमान कॉप सम्मेलन के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा, ”अपनी भूमि को समानता, भागीदारी और परिमाण के तीन छोटे सिद्धांतों से जोड़ने पर हम अपने साझा लक्ष्यों की दिशा में बहुत आगे निकल सकते हैं।”
इब्राहिम छियाव ने विशेष रूप से लाचार, ग्रामीण और छोटे किसानों के लिए भूमि को फिर उपजाऊ बनाने के प्रयासों में निजी क्षेत्र की भूमिका के बारे में सुश्री अमीना मोहम्मद से सहमति व्यक्त की। उन्होंने स्पष्ट किया कि निजी क्षेत्र से सहयोग लेने का मतलब भूमि का निजीकरण नहीं है।
सीओपी-14 के अध्यक्ष प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ”रेगिस्तान को फैलने से रोकना राष्ट्रीय लक्ष्य होना चाहिए। भारत में हम इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। भारत में वन क्षेत्र बढ़ रहा है। पिछले पांच वर्ष में 24 प्रतिशत से इसमें करीब 15,000 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। हम 33 प्रतिशत वन क्षेत्र के अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे हैं।”
उन्होंने यह भी कहा, ”यदि इंसान ने अपने कामों से पर्यावरण को क्षति पहुंचाई है तो अब उसके सही काम हालात बदलेंगे और भावी पीढ़ी को बेहतर स्वरूप में पृथ्वी सौंपेंगे।”
सम्मेलन का विषय है, ”अवसरों के द्वार खोलने के लिए भूमि को उपजाऊ बनाने में निवेश (इन्वेस्टिंग इन रेस्टोरेशन टू अनलॉक ऑपर्च्यूनिटीज़)।” सम्मेलन में मंत्रियों, संयुक्त राष्ट्र और अंतर-सरकारी संस्थाओं के प्रमुखों, युवाओं, स्थानीय सरकारों के प्रतिनिधियों, कारोबारी नेताओं और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों सहित 8,000 से अधिक प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।
सीओपी-14 का समापन शुक्रवार को होगा। इसमें 30 से अधिक निर्णयों और देशों के नेतृत्व में पहलों का अनुमोदन होने की संभावना है। सरकारें, भूमि के बंजर होने का रुख पलटने के लिए विशेषकर अगले दो वर्ष में और उससे आगे भी इन प्रयासों को अपनाकर कार्रवाई करेंगी।
संपादकों के लिए नोट :
भारत संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण नियंत्रण समझौते से संबद्ध पक्ष है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार का नोडल मंत्रालय है, जो देश में समझौते के अमल पर नजर रखता है।
भारत की जनसंख्या 2050 तक 1.7 अरब तक पहुंच जाने का अनुमान है। करीब 2 अरब हेक्टेयर भूमि का विनाश हो चुका है, जो भारत के क्षेत्रफल से तीन गुना से अधिक है, किन्तु इसे वापस उपजाऊ बनाया जा सकता है। भारत उन पहले देशों में शामिल है, जिन्होंने भूमि की उपजाऊ क्षमता नष्ट होने से बचाने के 2030 सतत् विकास लक्ष्य के प्रति संकल्प व्यक्त किया था।
भारत दो वर्ष तक वर्तमान कॉप14 का अध्यक्ष है । कॉप के पिछले सत्रों की तरह ही उच्च स्तरीय खंड में चर्चा चल रही हैजिससे वार्ताओं के लिए राजनीतिक समर्थन बढ़ाया जा सके और समझौते पर अमल में सम्बद्ध पक्षों का अधिक से अधिक सहयोग लिया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र मरूस्थीकरण नियंत्रण समझौता (यूएनसीसीडी)
यह भूमि के कुशल प्रबंधन से जुड़ा अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। यह जनता, समुदायों और देशेां को सम्पदा का सृजन करने, अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने और पर्याप्त खाद्य सामग्री, जल एवं ऊर्जा को संचित करने में मदद देता है। यह सुनिश्चित करता है कि भूमि का उपयोग करने वालों को टिकाऊ भूमि प्रबंधन के लिए सामर्थ्यकारी माहौल मिले। समझौते से जुड़े 197 पक्ष साझेदारी के माध्यम से सूखे से तुरन्त और कारगर ढंग से निपटने के लिए मजबूत व्यवस्थाएं स्थापित करते हैं और विज्ञान सतत् विकास लक्ष्यों को समन्वित करने, उन्हें हासिल करने की गति तेज करने में मदद करता है, जलवायु परिवर्तन को सहने की क्षमता पैदा करता है, तथा जैव-विविधता क्षय को रोकता है।
संदर्भ सामग्री और संसाधन
उपयोग के लिए फोटो सहित संदर्भ सामग्री और अन्य संसाधन यहाँ उपलब्ध हैः
https://www.unccd.int/conventionconference-parties-copcop14-new-delhi-india/cop14-media-resources
उद्घाटन वक्तव्य सचिवालय को उपलब्ध होते ही इस पन्ने पर अपलोड कर दिए जाएंगे।
स्रोत की सूचना का साथ उपयोग के लिए मुफ्त फोटो यहाँ उपलब्ध हैं- https://www.dropbox.com/sh/r2al252no2m5t2f/AACI5_HQHYf6SOV1l6_DgQTPa?dl=0
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