संयुक्त राष्ट्र महासचिव का संदेश
डिजिटल युग में सहिष्णुता और सम्मान की शिक्षा
महासचिव : डिजिटल जगत में यहूदी विरोधी हिंसा बढ़ने और नफरत फैलने से दुनिया नाज़ुक मोड़ पर, सामाजिक एकता पर ध्यान देने का आग्रह
न्यूयॉर्क में 26 जून को ‘यहूदी विरोध एवं नस्ल भेद के अन्य रूपों तथा नफ़रत का सामना- डिजिटल युग में सहिष्णुता और सम्मान सिखाने की चुनौती’ विषय पर महासभा की अनौपचारिक बैठक में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश का वक्तव्य।
मैं आज दुनिया भर में साफ दिखाई दे रही नफरत और हिंसा की सुनामी का सामना करने के लिए हम सबको एकजुट करने वाले सभी पक्षों को धन्यवाद देता हूँ। सान डिएगो में सिनेगॉग यानि यहूदी उपासना स्थल के रब्बी यिसरोएल गोल्डस्टाइन का विशेष रूप से स्वागत है। रब्बी महोदय मैं अप्रैल में हुए गोलीकांड के बाद से आपकी प्रेरणास्पद कार्रवाइयों के लिए धन्यवाद देता हूं जिसमें आपके एक श्रद्धालु की मृत्यु हो गई थी और आप भी घायल हो गए थे।
मैंने पिछले दिनों न्यूयॉर्क में यहूदी विरासत संग्रहालय में प्रदर्शनी देखी, जिसका शीर्षक था ‘ऑशवित्ज़. नॉट लाँग अगो, नॉट फॉर अवे।” (Auschwitz. Not long ago. Not far away) यह शीर्षक बिल्कुल सही है। हौलोकास्ट को हुए अभी बहुत समय नहीं बीता है- ये एक औसत जीवनकाल पहले ही हुआ था। और वास्तव में यह बहुत दूर भी नहीं हुआ।- यह यूरोप के बीचों-बीच हुआ था और आज जब हम यहूदी विरोधी द्वेष और असहिष्णुता के अन्य रूपों से संघर्ष कर रहे हैं तो यह हमें याद रखना है।
प्रदर्शनी में उस दुष्प्रचार, छद्म विज्ञान और जहरीले कैरिकेचर दिखाए गए हैं जो हिटलर के शासन और दुनिया के प्रति उसके नज़रिए के प्रतीक थे। हिटलर तो पराजित हो गया किन्तु यहूदी विरोध की आग नहीं बुझी, वह आज भी धधक रही है।
तेल अवीव विश्वविद्यालय ने पिछले महीने जारी अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2018 में यहूदी विरोधी हिंसक घटनाओं में एक वर्ष पहले की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अमेरिका में, यूरोप और अन्य स्थानों पर सिनेगॉग, कब्रिस्तान और व्यक्तियों पर हुए हमलों के कारण आज भी बहुत से यहूदी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। युगों पुरानी यह नफ़रत की आज भी धधक रही है। इतना ही नहीं, असहिष्णुता कई फन वाला नाग है।
हाल ही के महीनों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सिनेगॉग पर हमलों के अलावा हमने मस्जिदों में हत्याओं और गिरिजाघरों में बम विस्फोटों की घटनाएं देखी हैं। शरणार्थी और प्रवासी आज भी हिंसा का सामना कर रहे हैं। श्वेत वर्चस्ववादी और नवनात्जियों के हौसले उन चुनावों के परिणामों से बुलंद हो रहे हैं जिनमें उनके नस्लवादी संदेशों की लोकप्रियता जाहिर हो रही है।
और आज के डिजिटल जगत में हम ज़हर भरे नए तीर, घृणा तेजी से फैलाने वाले तरीक़े और ऐसे नए मंच देख रहे हैं जहां दूर-दूर बैठे उग्रवादी एक-दूसरे की तलाश कर लेते हैं और एक-दूसरे को उकसाते हैं। संयुक्त राष्ट्र इन बुराइयों को अपने अस्तित्व का सवाल मानकर लड़ रहा है क्योंकि उसकी स्थापना ही नरसंहार के विरूद्ध हुई थी। आज हम इस संघर्ष में एक नाज़ुक मोड़ पर पहुंच गए हैं।
एक सप्ताह पहले मैंने समूचे संयुक्त राष्ट्र तंत्र में नफ़रत की भाषा का सामना करने की रणनीति का शुभारंभ किया था। नफ़रत भरी भाषा बड़ी आग सुलगा सकती है जैसा हमने रवांडा से म्यांमार तक और उनके बीच अनेक स्थानों पर देखा है। नफ़रत का अगर विरोध न किया जाए तो वह लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक स्थिरता और शांति को तार-तार कर सकती है।
हमें नफरत की भाषा का सामना उसी तरह करना है जैसे किसी भी बुराई का करते हैं। इसकी निंदा करनी है और उसे भड़काने से इंकार करना है। लेकिन इसका मतलब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना बिल्कुल नहीं है। इसका अर्थ है नफ़रत की भाषा को अंतर्राष्ट्रीय कानून में निषिद्ध भेदभाव, मारपीट और हिंसा जैसी अधिक ख़तरनाक प्रवृत्तियों को उकसाने से रोकना है।
पूजा स्थलों पर हाल के हमलों को देखते हुए मैंने अलायंस ऑफ सिविलाइजेशन के उच्च प्रतिनिधि से यह पता लगाने को कहा है कि संयुक्त राष्ट्र, पूजा स्थलों की सुरक्षा और पवित्रता को बरक़रार रखने के लिए और क्या कर सकता है। मुझे आशा है कि इस बारे में कार्य योजना जल्दी ही तैयार हो जाएगी।
हमें डिजिटल जगत में अपने प्रयासों को सबसे जल्दी बढ़ाना होगा जहां नफ़रत पनप रही है। सोशल मीडिया बहुत बड़े पैमाने पर नफ़रत फैलाने का माध्यम बन गया है। इसमें न कोई लागत आती है और न कोई जवाबदेही है। बुरे इरादे वाले लोगों के लिए यह सबसे लोकप्रिय माध्यम बन गया है। वास्तव में सोशल मीडिया का इस्तेमाल समाज का ध्रुवीकरण करने और लोगों को नफ़रत का शिकार बनाने के लिए किया जा रहा है। इसका शिकार अक्सर महिलाएं, अल्पसंख्यक और कमज़ोर वर्ग बनते हैं।
मैंने पिछले वर्ष डिजिटल सहयोग के बारे में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। इसने हाल ही में अपनी रिपोर्ट दी है जिसमें सोशल मीडिया उद्यमों से आग्रह किया गया है कि वे सुरक्षा और मानव अधिकारों के प्रति बढ़ते खतरे की चिंताओं पर ध्यान दें।
‘क्राइस्टचर्च कॉल’ भी इस दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण क़दम है – जो वास्तव में ऑनलाइन उग्रवाद और हिंसा उकसाने की प्रवृत्ति से निपटने के लिए सरकारों और अग्रणी तकनीकी कंपनियों का संकल्प है। संयुक्त राष्ट्र एक मंच प्रदान करता है जहां तमाम संबद्ध पक्ष भविष्य की राह पर चर्चा कर सकते हैं।
हमें सामाजिक सामंजस्य में निवेश करने की आवश्यकता है ताकि समाज के सभी सदस्य महसूस कर सकें कि उनकी पहचान का सम्मान हो रहा है और भविष्य से उनका हित जुड़ा है। मैं आपको गारंटी देता हूं कि मैं यहूदी विरोधी द्वेष, नस्ल भेद और नफ़रत के अन्य रूपों का जोर-शोर से बेहिचक विरोध करता रहूंगा।
अंत में मैं इतना कहना चाहूंगा कि यहूदी विरासत संग्रहालय की प्रदर्शनी- ‘ऑशवित्ज़. नॉट लाँग अगो, नॉट फॉर अवे।” (Auschwitz. Not long ago. Not far away) – बहुत दूर नहीं, यहीं लोअर मैनहैटन में है। प्रदर्शनी 3 जनवरी तक चलेगी और मैं आप सबसे आग्रह करता हूं कि इस प्रदर्शनी को देखें। यह आपको उचित क़दम उठाने और ज़रूरी आत्मविश्लेषण करने के लिए प्रेरित करेगी।
धन्यवाद।