25 सितंबर को न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस के भाषण का मूल पाठ निम्नलिखित है:
हमारी दुनिया ‘विश्वास की कमी के विकार’ से जूझ रही है। लोग परेशान हाल में हैं और असुरक्षित भी। भरोसा टूट रहा है। भरोसा राष्ट्रीय संस्थानों से। भरोसा देश से। भरोसा नियमों पर आधारित विश्वव्यापी व्यवस्था से।
देशों के भीतर भी लोगों में अविश्वास बढ़ रहा है। पुलिस से भरोसा उठ चुका है। ध्रुवीकरण बढ़ रहा है और चिकनी चुपड़ी बातों से लोगों को बरगलाया जा रहा है। देशों में परस्पर सहयोग की निश्चितता कम और मुश्किल हुई है। हमारी सुरक्षा परिषद में विभाजन साफ दिखाई देने लगे हैं। जैसे जैसे इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों ने बीसवीं सदी के संस्थानों और विचारधाराओं को पीछे छोड़ा है, विश्व स्तर पर गवर्नेंस से भरोसा भी कमजोर हुआ है।
हमारे पास विश्वस्तर पर गवर्नेंस की कभी कोई ठोस प्रणाली नहीं रही है, न ही पूरी तरह से लोकतांत्रिक प्रणाली ही। फिर भी पिछले कुछ दशकों में हमने अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए मजबूत संस्थानों की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र के रूप में हमने साझा हितों में संस्थानों और नियमों की स्थापना की। हमने लाखों लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाया। हमने अशांत देशों में शांति कायम की है, और बेशक, तीसरे विश्वयुद्ध को टाला है।
लेकिन इन सभी से बेपरवाह नहीं हो जाना चाहिए। आज विश्व में अराजकता बढ़ रही है। सत्ता संबंध अस्पष्ट हुए हैं। सार्वभौमिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। लोकतांत्रिक सिद्धांत बंधक बनाए जा रहे हैं और कानून व्यवस्था तहस-नहस हो रही है। जैसे-जैसे नेता और राज्य अपनी सीमाओं से इस अपनी सोच का विस्तार कर रहे हैं, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दंडाभाव बढ़ रहा है।
हम विरोधाभासों के साक्षी हैं। विश्व ज्यादा कनेक्टेड है लेकिन समाज अधिक विखंडित हुआ है। चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं और लोग अपने खोल के अंदर सिमट रहे हैं। बहुपक्षीयता उस दौर में खतरे में है जब उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। सच्चाई यह है कि हम बहुध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ रहे हैं।
लेकिन बहुध्रवीयता शांति की गारंटी नहीं, न ही इससे विश्वव्यापी समस्याओं का समाधान होने वाला है। एक दशक पूर्व यूरोप भी बहुध्रुवीय था। सत्ता संतुलन शत्रुओं को दूर रखने के लिए पर्याप्त समझा जाता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यूरोप में सहयोग और समस्या समाधान के लिए मजबूत बहुपक्षीय संरचनाओं के अभाव में विश्व युद्ध का विध्वंस सामने आया। आज सत्ता संतुलन में परिवर्तन के बाद विरोध की आशंका बढ़ सकती है।
प्राचीन ग्रीस में पेलोपोनेशियन युद्ध का आकलन करने के बाद थूसिदिदेस ने कहा था, ‘यह एथेंस का उदय था और इसके बाद स्पार्टा के मन में जो भय समाया, उसने युद्ध को अपरिहार्य बना दिया।’ इसे राजनीतिक विज्ञानी ग्राहम एलिसन ने ‘थूसिदिदेस ट्रैप’ कहा था। लेकिन अपनी पुस्तक ‘डेस्टिनीड फॉर वॉर’ और पूर्व में शत्रुता के अनेक उदाहरणों की समीक्षा करने के दौरान उन्होंने कहा कि संघर्ष कभी अपरिहार्य नहीं होता।
बेशक, नेतृत्व की प्रतिबद्धता से लेकर रणनीतिक सहयोग करने और प्रतिस्पर्धात्मक हितों को साधने के जरिए हम युद्ध को टाल सकते हैं और विश्व को सुरक्षा की राह दिखा सकते हैं। नेताओं का यह कर्तव्य है कि वे लोगों के कल्याण के लिए कार्य करें। लेकिन इससे भी महती जिम्मेदारी निभानी है। हम सब मिलकर एक समान उद्देश्य के लिए काम करें, साथ ही एक सुव्यवस्थित, सुदृढ़ और सशक्त बहुपक्षीय प्रणाली को प्रोत्साहन और सहयोग प्रदान करें- यह भी हमारा कर्तव्य है।
हमें नियम आधारित व्यवस्था की जरूरत है जिसके केंद्र में संयुक्त राष्ट्र हो और विभिन्न संस्थान और संधियां जो संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को अमली जामा पहनाएं। और हमें शांति कायम करके, मानवाधिकारों की सुरक्षा करके और महिलाओं एवं पुरुषों की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के जरिए अंतरराष्ट्रीय समन्वय के मूल्यों को प्रदर्शित करना है। इसीलिए मैं सुधारों के लिए प्रतिबद्ध हूं, साथ ही चाहता हूं कि संयुक्त राष्ट्र ‘विश्व के आम जन’ (वी द पीपुल) की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य करे।
आम जन और पृथ्वी के अस्तित्व पर व्यापक संकट के दौर में, जब साझा समृद्धि के अवसर भी अपार हैं, भले ही आगे का मार्ग धुंधला हो, फिर भी सामूहिक तौर पर एक समान लक्ष्य के लिए एकजुटता से आगे बढ़ा जा सकता है। इसी प्रकार हम लोगों में भरोसा कायम कर सकते हैं।
पिछले वर्ष अपने संबोधन में मैंने सात चुनौतियों के बारे में बताया था। एक वर्ष बाद भी वे चुनौतियां जस की तस हैं। लोगों में इस बात की नाराजगी है कि हम सीरिया, यमन और दूसरे कई क्षेत्रों में संघर्षों को समाप्त नहीं कर पाए। रोहिंग्या लोग सुरक्षा और न्याय की तलाश में भटक रहे हैं। उन्हें दरबदर कर दिया गया है- वे भयग्रस्त और परेशानहाल हैं। फिलिस्तीन और इजराइल अब भी अंतहीन संघर्ष से जूझ रहे हैं- दो राज्यीय समाधान दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा।
आतंक के भय का साया मंडरा रहा है जिसका जड़ में कट्टरता और हिंसक अतिवाद हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगठित अपराध और मानव तस्करी, मादक पदार्थों, हथियारों और भ्रष्टाचार जैसे अपराधों और आतंकवाद के बीच गहरा संबंध है। परमाणु संकट अब खत्म नहीं हुआ है और उसके प्रसार की गंभीर आशंका है। परमाणु हथियारों से लैस देश अपने असलहे को आधुनिक बना रहे हैं। हथियारों की होड़ कभी भी शुरू हो सकती है और उनके इस्तेमाल न करने की संभावना भी कम हो रही है। हमने देखा है कि प्रतिबंध के बावजूद रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया। फिर खतरनाक जैविक हथियारों से बचने की उम्मीद भी कम है।
गैर बराबरी ने सामाजिक संरचनाओं से लोगों का विश्वास कम किया है और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में यह बहुत बड़ी बाधा है। व्यापार संबंधी तनाव बढ़े हैं। प्रवासियों और शरणार्थियों को लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय सहयोग के अभाव में ऐसे जननायक उभर रहे हैं जो लोगों की भावनाओं को भड़का रहे हैं। एक ओर इस वर्ष हम सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र की सतरहवीं वर्षगांठ मना रहे हैं, लेकिन दूसरी मानवाधिकार अपनी जमीन खो रहे हैं और अधिनायकवाद उभार पर है।
राजनीति में निराशावाद बढ़ रहा है, इसीलिए हमें भविष्यवाणियों से सावधान रहना चाहिए जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए की जाती हैं। अगर आपका पड़ोसी आपको खतरनाक लगता है तो सोचिए, अगर वह नहीं होगा तो कैसा खतरा उत्पन्न होगा। प्रवासियों के लिए अपने द्वार बंद करने वालों को सोचना होगा कि वे केवल मानव तस्करों के लिए रास्ते आसान कर रहे हैं। जो देश आतंकवाद से अपने संघर्ष में मानवाधिकारों को नजरंदाज करते हैं, वे दरअसल उग्रवाद की ही जमीन तैयार कर रहे हैं।
यह हमारा कर्तव्य है कि इन प्रवृत्तियों को रोका जाए और इन चुनौतियों को हल किया जाए। हमें भय नहीं, सच्चाई के आधार पर अपनी दिशा तय करनी होगी- भ्रम नहीं, तर्क के आधार पर पहल करनी होगी। हम जो भी करें, उसके केंद्र में समस्या का निवारण होना चाहिए।
महासभा का यह सत्र हमें प्रगति का एक अवसर उपलब्ध कराता है। मैं यहां एक उदाहरण देना चाहता हूं। मैंने देखा कि मेरे एक्शन फॉर पीसकीपिंग इनीशिएटिव का लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया। इसे 148 देशों और संगठनों ने अपनी मंजूरी दी है। इस पहल का उद्देश्य आज के लंबे और अस्थिर हालात में शांति अभियानों की मदद करना है।
लेकिन आज मैं दो महत्वपूर्ण चुनौतियों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं। मुझे प्रतीत होता है कि एक वर्ष के भीतर इन पर तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। ये जलवायु परिवर्तन और बढ़ती तकनीक से जुड़े जोखिम हैं। आइए, इन पर एक-एक करके चर्चा करें।
पहला है, जलवायु परिवर्तन से हमारे अस्तित्व पर प्रत्यक्ष खतरा। हम एक खतरनाक स्थिति तक पहुंच चुके हैं। अगर अगले दो वर्षों में हमने अपनी दिशा नहीं बदली तो जलवायु परिवर्तन की विपत्ति से बचना नामुमकिन होगा। जिस गति से मानव जाति प्रगति कर रही है, जलवायु उससे भी तेज गति से बदल रहा है। इसकी गति ने विश्व भर में ‘त्राहि माम-त्राहि माम’ की विस्फोटक गूंज पैदा की है।
1850 से मौसम का रिकॉर्ड दर्ज किया जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संस्था का कहना है कि 1850 के बाद सबसे गर्म 18 वर्षों में पिछले दो दशक भी शामिल हैं। इस वर्ष पहली बार उत्तरी ग्रीनलैंड की समुद्री बर्फ टूटना शुरू हो चुकी है। 30 लाख वर्षों में वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा सबसे अधिक है और यह लगातार बढ़ रही है। इससे भी बुरा यह है कि विश्व समुदाय के प्रतिनिधि होने के बावजूद हम चुप्पी साधे हुए हैं। हमें विश्व के सर्वोत्तम वैज्ञानिकों की आशंकाओं पर विचार करना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि हमारी आंखों के सामने क्या हो रहा है। हमें अधिक महत्वाकांक्षी होना चाहिए और समझना चाहिए कि इसके लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है।
हमें आश्वस्त करना होगा कि पेरिस समझौते को लागू किया जाए। इसमें उचित मार्गदर्शन की क्षमता तो है लेकिन इसके लक्ष्यों, जोकि जलवायु परिवर्तन के खतरनाक परिणामों को कम करने पर केंद्रित हैं, को हासिल करना असंभव लगता है। मैं इस बात के लिए चिंतित हूं कि बैंकॉक में इस समझौते को लागू करने पर हुई चर्चा किसी उल्लेखनीय प्रगति के बिना ही समाप्त हो गई।
आगामी दिसंबर में पोलैंड में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ कोप24 एक महत्वपूर्ण अवसर होगा। यह सम्मेलन सफल होना चाहिए। जैसा कि मैंने हाल ही में कहा था, कोपेनहेगन में सदस्य देशों के बीच के मतभेद हमें काटोवाइस में याद नहीं आने चाहिए।
अच्छी खबर यह है कि तकनीक हमारे साथ है। स्वच्छ ऊर्जा अधिक सस्ती और प्रतिस्पर्धात्मक है। अगर हम सही दिशा की ओर बढ़ें तो 2030 तक जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों से विश्व की अर्थव्यवस्था में 26 खरब अमेरिकी डॉलर का इजाफा होगा। हरित अर्थव्यवस्था से 2.4 अरब नई नौकरियों का सृजन होगा। अधिक से अधिक कंपनियों और निवेशकों को यह एहसास हुआ है कि हरित व्यापार, एक अच्छा व्यापार है। अर्थव्यवस्था के लिए संकट होने के बावजूद जलवायु परिवर्तन नए उद्योगों, नए बाजारों, अधिक नौकरियों का सृजन कर रहा है और फॉसिल फ्यूल पर हमारी निर्भरता कम हो रही है।
अर्थव्यवस्था के लिए यह खतरा नहीं कि वह कार्य कर रही है। असली खतरा यह है कि वह कार्य न करे। दरअसल सरकारों को साहसी और स्मार्ट होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि फॉसिल फ्यूल पर दी जाने वाली खरबों की सबसिडी को खत्म किया जाए। इसका अर्थ यह है कि कार्बन के लिए एक उपयुक्त मूल्य निर्धारित किया जाए। इसका अर्थ यह है कि उन अस्थायी संरचनाओं में निवेश बंद किया जाए जो आने वाले दशकों तक बुरी परंपराओं का पोषण करेंगी।
हमारा भविष्य दांव पर लगा हुआ है। ऐसा कोई नहीं जो इससे अछूता है। जलवायु परिवर्तन हर किसी को, हर स्थान को प्रभावित करता है। पृथ्वी की तापमान वृद्धि को 2 डिग्री से नीचे रखना विश्व की समृद्धि और विभिन्न देशों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
अगले वर्ष सितंबर में मैं जन समर्थन जुटाने और वित्त पोषण करने के लिए जलवायु शिखर सम्मेलन आयोजित करूंगा। इसमें विभिन्न देशों, शहरों, अर्थव्यवस्था और राजनीति, व्यापार, वित्त और नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल होंगे और जलवायु परिवर्तन की समस्या पर विचार करेंगे। पेरिस समझौते के तहत विभिन्न देशों द्वारा राष्ट्रीय हितों के लिए संकल्प लेने के एक वर्ष बाद यह सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
हमें अधिक महत्वाकांक्षी होना होगा- और यह शिखर सम्मेलन नेताओं और प्रतिभागियों को अपनी महत्वाकांक्षाओं का प्रदर्शन करने का मौका देगा। यह संभव हो, इसके लिए हमें अभी से पहल करनी होगी। विश्व को जलवायु दूतों की जरूरत है।
अब हम नई तकनीक पर चर्चा करेंगे और इस पर भी कि हम किस प्रकार उससे जुड़े संकटों को दूर कर सकते हैं। यह हमारा पक्का वादा है। वैज्ञानिक प्रगति ने हमें खतरनाक बीमारियों से बचाया है, बढ़ती आबादी को पोषण करने में मदद की हे, और उसने व्यापारों, समुदायों, परिवारों और दोस्तों को एक दूसरे से जोड़ा है।
तेज गति से विकसित होते क्षेत्रों, जैसे कृत्रिम इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन और बायोटेक्नोलॉजी में इतनी क्षमता है कि वे सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की गति तीव्र करें। कृत्रिम इंटेलिजेंस ने भिन्न भिन्न भाषाएं बोलने वाले लोगों को परस्पर एक दूसरे से जोड़ा है और बेहतर निदान करने के लिए डॉक्टरों को सहयोग दिया है। ड्राइवरलेस वाहनों ने परिवहन के क्षेत्र में क्रांति कर दी है।
लेकिन संकट भी है और गंभीर खतरे भी। तकनीकी विकास ने श्रम बाजार को तहस-नहस कर दिया है। परंपरागत नौकरियां बदल चुकी हैं या गायब हो गई हैं। दूसरी ओर नौकरियों की तलाश करने वाले लोग बढ़ रहे हैं। पहले के मुकाबले बड़े पैमाने पर पुन प्रशिक्षण शिक्षण की जरूरत है। इसके लिए शुरुआती शिक्षा को भी श्रम बाजार के अनुकूल बनाना होगा। काम की प्रकृति बदल जाएगी। सरकारें भी मजबूत सामाजिक सुरक्षा तंत्र और सार्वभौमिक बुनियादी आय की संभावनाओं पर विचार कर सकती हैं।
इसी के साथ आतंकवादी भी तकनीक का दुरुपयोग कर रहे हैं। यौन शोषण और उत्पीड़न के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। संगठित आपराधिक तंत्र डार्क वेब का प्रयोग कर रहे हैं। एनक्रिप्शन और क्रिप्टोकरंसी के जरिए मानव और गैरकानूनी वस्तुओं की तस्करी के लिए भुगतान कर रहे हैं और मुनाफा कमा रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स का तो कहना है कि साइबर अपराध से हर वर्ष अपराधियों की झोली में 1.5 खरब अमेरिकी डॉलर पहुंच जाते हैं।
साइबरस्पेस में दुर्भावनापूर्ण कृत्यों- जैसे गलत सूचनाओं के प्रसारण- ने समुदायों का ध्रुवीकरण किया है और राज्यों से उनका भरोसा उठ रहा है। समाचारों या सोशल मीडिया फीड्स से लोगों तक गलत सूचनाएं पहुंचती हैं, उनकी भावनाओं को भड़काया जाता है, जातिवाद मजबूत होता है और लोगों को ऐसा लगता है कि वे सही हैं और बाकी सभी गलत।
डिजिटल क्रांति का दुरुपयोग कर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है और पुरुषों का प्रभुत्व मजबूत हो रहा है। बेशक, डिजिटल तकनीक की उपलब्धता में भारी लैंगिक अंतराल है और इससे डिजिटल विभाजन भी व्यापक हुआ है। हमें बाधाओं को दूर करना चाहिए और महिलाओं के लिए अवसर उत्पन्न करने चाहिए। साथ ही समानता सुनिश्चित करते हुए ऑनलाइन और जहरीली कॉरपोरेट संस्कृति में परिवर्तन करना चाहिए। तकनीकी क्षेत्र को अधिक मुक्त और विविध बनाया जाना चाहिए, यह उसके अपने फायदे के लिए भी जरूरी है।
जब तकनीक संस्थानों का स्वरूप खंडित कर रही है, तब देशों और सभी भागीदारों, सदस्य देशों, निजी क्षेत्र, शोध केंद्रों, नागरिक समाज और शिक्षाविदों के बीच समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है। डिजिटल चुनौतियों के लिए अनेक परस्पर लाभपरक समाधान हैं। हमें जल्द ही उन्हें लागू करने के रास्ते तलाशने होंगे।
संयुक्त राष्ट्र में हम सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तकनीक का सहारा लेते हैं। हम इनोवेशन लैब्स बना रहे हैं। एक लैब मेरे कार्यालय में भी है। जुलाई में मैंने डिजिटल समन्वय पर उच्च स्तरीय पैनल की स्थापना की जिसकी बैठक कल ही हुई है। यह सभी भागीदारों के बीच संवाद का एक मंच है।
युद्ध क्षेत्र में नई तकनीक के प्रयोग से शांति और सुरक्षा की हमारी समान जिम्मेदारी पर संकट मंडरा रहा है। कृत्रिम इंटेलिजेस का हथियार के तौर पर इस्तेमाल बढ़ती चिंता का विषय है। अगर हथियार अपना निशाना खुद चुनेंगे और उस पर हमला करेंगे तो सोचिए, कितनी भयावह बात है- इससे हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है। हथियारों का इस्तेमाल कम होगा तो संकट कम करने के हमारे प्रयास सफल होंगे और मानवता और मानवाधिकारों को मजबूती मिलेगी।
आइए, हम वर्तमान स्थिति को समझें। अगर मशीनें खुद फैसले लेने लगें और मानव जीवन को काबू में कर लें तो यह नैतिकता के लिहाज से भी अनुचित होगा। ईश्वर न करे, ऐसी स्थिति में जो युद्ध शुरू होगा, उसमें साइबर हमले के साथ-साथ न केवल सैन्य क्षमताओं को निशाना बनाया जाएगा, बल्कि नागरिक संरचनाओं का भी विनाश होगा।
पिछले महीने जिनेवा में घातक शस्त्र प्रणाली के सरकारी विशेषज्ञों के एक समूह ने 10 संभावित सिद्धांतों का खुलासा किया। इन मुद्दों पर अधिक से अधिक कार्य करने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त देशों के भीतर और देशों के बीच भरोसा कायम करने की भी आवश्यकता है, तभी हम नई तकनीक के जिम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित कर सकते हैं। मैं आपका आह्वान करता हूं कि आप इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को एक मंच के तौर पर इस्तेमाल करें। इसके जरिए आप उस डिजिटल भविष्य को पोषित कर सकते हैं जोकि सुरक्षित और सभी के लिए लाभपरक हो।
इसके बावजूद कि विश्व में अराजकता और भ्रम फैला हुआ है, फिर भी मुझे परिवर्तन और आशा की खुशनुमा हवा का एहसास होता है। कुछ दिन पहले सऊदी अरब में इथियोपिया और एरीट्रिया के बीच ऐतिहासिक शांति समझौता हुआ है। इसके बाद जिबूटी और एरीट्रिया के राष्ट्रपति शांति प्रक्रिया की शुरुआत के लिए जेदा में मिले। एरीट्रिया और सोमालिया ने राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं। इसी क्षेत्र में अंतरसरकारी विकास प्राधिकरण- आईसीएडी के शिखर सम्मेलन के संबंध में, दक्षिणी सूडान के दो प्रतिद्वंद्वी नेताओं ने अंततः शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
मुझे उम्मीद है कि ये प्रयास जारी रहेंगे जिससे पूर्वी अफ्रीकी देशों के नागरिक युद्ध और संघर्ष से मुक्त हो सकेंगे।
सिंगापुर शिखर सम्मेलन के दौरान एक और स्वागत योग्य पहल की गई। संयुक्त राज्य अमेरिका और लोकतांत्रिक कोरिया गणराज्य के प्रमुखों की मुलाकात हुई। साथ हो दोनों कोरियाई देशों के नेता प्योंगायांग में मिले। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में कोरियाई प्रायद्वीप के पूर्ण और निरीक्षणात्मक परमाणु हथियार मुक्त होने की संभावना बनती है।
कोलंबिया के दौरे के दौरान मैं इस बात से बहुत प्रभावित हुआ कि वहां के नागरिक शांति कायम करने के लिए प्रतिबद्ध है। बाद में राष्ट्रपति डुक ने भी इस वचनबद्धता को दोहराया। मध्य़ एशिया में मैंने व्यक्तिगत रूप से देखा है कि वहां उजबेकिस्तान के शांतिपूर्ण राजनैतिक संक्रमण के बाद सभी देशों में किस प्रकार सहयोग मजबूत हुआ है। ग्रीस और पूर्व मकदूनिया यूगोस्लाव गणराज्य ने अपने मतभेदों को दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। लाइबेरिया में हमारा दशकों चला शांति अभियान इसी वर्ष समाप्त हुआ है और देश में पहली बार शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संक्रमण हुआ है। मध्य अफ्रीका के अन्य देशों के समान यहां भी हमारा शांति अभियान सफल रहा है।
शरणार्थियों और प्रवासियों पर केंद्रित समझौतों को मंजूरी मिली है जिससे उम्मीद जगती है, इसके बावजूद कि जन साधारण के अधिकारों को सम्मान दिलाने के लिए अभी लंबी लड़ाई लड़नी है जिसमें देशों के वैध हित भी सुरक्षित रहें। पिछले तीन दशकों के दौरान विश्व के लाखों लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकाला गया है और हमने पिछले दो वर्षों के दौरान चार देशों में अकाल की आशंका को टाला है।
इस वर्ष आर्मीनिया शांतिपूर्ण राजनैतिक संक्रमण का गवाह रहा। देश के युवा लोग इस संक्रमण के केंद्र में थे। इससे प्रदर्शित होता है कि लोकतंत्र की स्थापना में युवा किस प्रकार योगदान दे सकते हैं। वे लोकतंत्र की प्रगति के लिए अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं।
चूंकि लैंगिक समानता पर सभी जोर दे रहे हैं, महिलाओं एवं लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव, हिंसा, उत्पीड़न और शोषण, असमान वेतन, नीति निर्धारण में उनकी भागीदारी न होने, इन सभी के संबंध में जागरूकता बढ़ रही है।
संयुक्त राष्ट्र को लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में पहली बार हमारे वरिष्ठ प्रबंधन समूह और स्थानीय समन्वयकों के नेतृत्व वाले विश्व के मुख्य राष्ट्रीय दलों में महिलाओं की बराबर भागीदारी है। हम प्रत्येक स्थान पर समानता और सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
जैसा कि हमारे पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने एक बार कहा था, ‘हमारी नियति साझा है। अगर हम एक हो जाएं तो हम नियति को काबू में कर सकते हैं। इसीलिए मित्रों, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई है और हम यहां मौजूद हैं।’
हमारा भविष्य भाईचारे पर निर्भर करता है। हम उस भरोसे को दोबारा कायम कर सकते हैं। हमें बहुपक्षीयता को पुनर्जीवित करना होगा। सभी की गरिमा की रक्षा करनी होगी।